Saturday, December 11, 2021

बीमारी क्यूं कभी अकेली नहीं आती?

ओशो बताते हैं गहरा रहस्य जो हर किसी को पता होना चाहिए 


सोशल मीडिया
: 11 दिसंबर 2021: (तंत्र स्क्रीन डेस्क)::

कभी कभी बड़ी बड़ी बीमारियां भी इंसान को हरा नहीं पाती वह अपने रूटीन में चलता जाता है लेकिन कभी कभी नज़ला ज़ुकाम का छोटा सा अटेक भी मुसीबत खड़ी कर देता है। मैं हैरान था कि कभी कभी छोटी सी बीमारी मजबूरी क्यूं बन जाती है? इस बार मुझे इसका अटेक हुआ  एक पुराने मित्र के अचानक आने से। मुझे लगा कि शायद उसे भी था इस लिए मुझे भी इंफेक्शन हो गयी। इस बीमारी में पढ़नलिख्ना सम्भव ही नहीं था इस लिए सोचता रहा। मसाले वाली चाय पी और इंफेक्शन की गोली भी खाई। तभी ध्यान में आया की आज तो 11 दिसंबर है। ओशो का अवतरण दिवस। फोन पर कुछ तलाश किया तो ओशो की ढेर सारी समग्री मिली। इन्हीं में एक है जिनमें ओशो कहते हैं: बीमारी अकेली नहीं आती।  

ओशो ने जो बताया वह अनमोल है। समझने की गहरी बात है। उसी में है आरोग्य रहने का रहस्य। एक बहुत बड़ा सीक्रेट। ओशो बाकायदा हवाला देते हुए कहते हैं: आधुनिक मनोविज्ञान कहता है  कि जब तक आदमी का मन न बदला जाए, तब तक किसी बीमारी से वस्तुत: छुटकारा नहीं होता।

इसलिए तुमने भी देखा होगा, एक दफे बीमारी के चक्कर में पड़ जाओ तो उससे बचने का रास्ता नहीं दिखता। किसी तरह एक बीमारी से निकल नहीं पाते कि दूसरी घर कर लेती है, 'कि दूसरे से निकल नहीं पाते कि तीसरी घर कर लेती है। ऐसा लगता है, एक कतार है बीमारियों की, तुम एक से निपटे कि दूसरी बीमारी पकड़ती है। जब तक ठीक थे, ठीक थे। इसलिए लोग कहते हैं, बीमारी अकेली नहीं आती। कहावतें कहती हैं, बीमारी अकेली नहीं आती। संग—साथ में और बीमारियां लाती है। दुख अकेला नहीं आता, साथ में भीड़ लाता है।

इसका कारण? इसका कारण न तो दुख है, न बीमारी है। इसका कारण यह है कि मूल को हम छूते नहीं।

समझो कि एक वृक्ष की जड़ों में रोग लग गया है और पत्ते विकृत होकर आने लगे हैं। पूरे खिलते नहीं, पूरे खुलते नहीं, हरियाली खो गयी है। तुम पत्ते काटते रहो, या पत्तों पर मलहम लगाते रहो, या पत्तों पर जल का छिड़काव करते रहो—गुलाब जल का छिड़काव करो, तो भी कुछ बहुत होगा नहीं। जड़ जब तक आमूल स्वस्थ न हो तब तक कुछ भी न होगा।

मनुष्य की जड़ उसके मन में है। मनुष्य शब्द ही मन से बना है। मनुष्य यानी जो मन में रुपा है, मन में गड़ा है। उर्दू का शब्द है, आदमी, वह उतना महत्वपूर्ण नहीं। उसमें बहुत गहरा अर्थ नहीं है। उसमें जो अर्थ भी है, वह छिछला है। आदम का अर्थ होता है, मिट्टी। 'जो मिट्टी से बना है, उसको कहते आदमी। क्योंकि भगवान ने पहले आदमी को मिट्टी से बनाया और फिर उसमें श्वास फूंक दी, इसलिए उसका नाम आदम। फिर आदम के जो बच्चे हुए, उनका नामे आदमी। आदमी मिट्टी से बना है, मतलब आदमी देह है।

हमारी पकड़ इससे गहरी है। हम कहते है, मनुष्य। अंग्रेजी का मैन भी संस्कृत के मन का ही रूपांतर है। वह भी महत्वपूर्ण है। हम कहते हैं, मनुष्य। हम कहते हैं, मिट्टी नहीं है आदमी, आदमी है मन, आदमी है विचार, आदमी है उसका मनोविज्ञान। जैसे ईसाइयत, इस्लाम और यहूदी आदम को पहला आदमी मानते हैं, हम नहीं मानते। क्योंकि आदम होना तो आदमी का ऊपरी वेश है, वह असली बात नहीं है। असली बात तो भीतर छिपा हुआ सूक्ष्म रूप है।

मनुष्य का अर्थ ही होता है, जिसकी जड़ें मन में गड़ी हैं। लेकिन आधुनिक खोजें इस सत्य के करीब आ रही हैं। आधुनिक खोजें इस बात को स्वीकार करने लगी हैं कि आदमी शरीर पर समाप्त नहीं है। न तो शरीर पर शुरू होता है, न शरीर पर समाप्त होता है। शरीर तो घर है जिसमें कोई बसा है। फिर हम यह भी नहीं कहते कि आदमी मन पर समाप्त हो जाता है, हम कहते हैं, मन में गड़ा है। है तो मन से भी पार। इसलिए आदमी है तो आत्मा।

अब इन तीन शब्दों को ठीक से लेना—आत्मा, मन, देह। मन दोनों के बीच में है। मन को तुम शरीर से जोड़ दो तो संसारी हो जाते हो और मन को तुम आत्मा से जोड़ दो तो संन्यासी हो जाते हो। मन के जोड़ का सारा खेल है। आत्मा भी तुम्हारे भीतर है, शरीर भी तुम्हारे पास है, बीच में डोलता हुआ मन है। इसलिए मन सदा डोलता है। डांवाडोल रहता है। मध्य में लहरें लेता रहता है। अगर तुम्हारा मन शरीर की छाया होकर चलने लगे तो तुम संसारी, अगर तुम्हारा मन आत्मा की छाया होकर चलने लगे, तुम संन्यासी। कुछ और फर्क नहीं है। मन अगर अपने से नीचे की बात मानने लगे तो संसारी, मन अगर अपने ऊपर देखने लगे तो संन्यासी।

संन्यास की धारणा इस देश में पैदा हुई, क्योंकि हमें यह बात समझ में आ गयी कि मन दो ढंग से काम कर सकता है। मन तटस्थ है। मन की अपनी कोई धारणा नहीं है। मन यह नहीं कहता, ऐसा करो। तुम पर निर्भर है। तुम चाहो तो मन को शरीर के पीछे लगा दो, तो वह शरीर की गुलामी करता रहेगा। मन तो बड़ा अदभुत गुलाम है। उस जैसा आज्ञाकारी कोई भी नहीं। तुम उसे आत्मा की सेवा में लगा दो, वह आत्मा की सेवा में लग जाएगा। तुम उसे लोभ में लगा दो, वह लोभ बन जाएगा। तुम उसे करुणा में लगा दो, वह करुणा बन जाएगा।

सारे धर्म की कला इतनी ही है कि हम मन को नीचे जाने से हटाकर ऊपर जाने में कैसे लगा दें। और खयाल रखना, जो सीढ़ियां नीचे ले जाती हैं वही सीढ़ियां ऊपर ले जाती हैं। सीढ़ियां तो वही हैं। ऐसा भी हो सकता है कि दो आदमी बिलकुल एक जैसे हों, एक जगह हों, और फिर भी एक संन्यासी हो और एक संसारी हो।

ओशो.

एस धम्मों सनंतनो

प्रवचन:: 75

ओशो की बहुत सी और महत्वपूर्ण बातें आप यहां क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं


Monday, November 29, 2021

कोरोना अंतराल के बाद भैरव बाबा को चढ़ी 56 प्रकार की शराब

 जानिए इसके पीछे का रहस्य--कहाँ जाती है अर्पित की गई शराब 

उज्जैन में है विश्व प्रसिद्ध काल भैरव मंदिर जहां दो दिवसीय भैरव अष्टमी पर्व की परम्परिक शुरुआत हुई।  कोरोना की वजह से लम्बे अंतराल के बाद रात 9 बजे की विशेष आरती भी बहुत ही आस्था और सम्मान से भव्य माहौल में हुई। आरती के बाद देर रात 12 बजे भगवान काल भैरव का विशेष पूजन हुआ। इस पूजन का विशेष महत्व है और इसमें किस्मत वाले ही शामिल हो पते हैं।  इसके बाद भैरव बाबा को 56 प्रकार की शराब का भोग भी लगाया गया.इसके साथ ही फिर आज 111 तरह के पकवानों का भंडारा लगाने की तैयारियां शुरू हुईं। 

बता दें कि मन्दिर को आकर्षक विद्युत रोशनी, फूलों व बलून से सजाया गया है।  इसके बाद 28 नवंबर शाम 4 बजे बाबा भैरव नगर भ्रमण पर भी निकले। इसमें भेरवगढ़ जेल का प्रशासनिक अमला बाबा को सलामी भी देता है। गौरतलब है कि कल भैरव भगवान शिव के सेनापति हैं। लोग अपने दुश्मनों से भय मुक्त होने के लिए भी इन्हीं की पूजा करते हैं। 

धर्म. पूजन, अधयात्म और तंत्र के क्षेत्र में शिव के रूप में ही गिने जाते हैं बाबा भैरव और तंत्र में तो इनकी पूजा खास महत्व रखती है। औघड़ भी इन्हीं से आशीर्वाद पाते हैं। कोर्ट कचहरी और मुकदमों में विजय के लिए किया जाता है इन्हीं का ध्यान। कदम कदम पर जब जंग की स्थितयां बनती हैं और सब कुछ अपने विपरीत होने लगता है तो भैरव बाबा उस नाज़ुक समय में भी रास्ता दिखाते हैं।  

जब कोई रास्ता नहीं सूझता उस समय भैरव बाबा का नाम ही तसल्ली देने लगता है। भैरव अर्थात भय से रक्षा करने वाला, इन्हें शिव का ही रूप माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार काल भैरव भगवान शिव का ही साहसिक और युवा रूप हैं।  जिन्हें रुद्रावतार भी कहते हैं -जो शत्रुओं और संकट से मुक्ति दिलाते हैं। उनकी कृपा हो तो कोर्ट-कचहरी के चक्करों से जल्दी छुटकारा मिल जाता है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार हर महीने कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी व्रत रखा जाता है।  इस दिन कालभैरव की पूजा की जाती है। उज्जैन में विश्व का एक मात्र ऐसा मंदिर है।  जहां पर कालभैरव भगवान पर मदिरा का चढ़ावा चढ़ाया जाता है। यूं कई अन्य जगहों पर भी कुछ मंदिर हैं जहाँ शराब चढ़ाई जाती है। 

जहां तक उज्जैन की बात है यहाँ लोग दूर दूर से आते हैं नतमस्तक होने के लिए। महाकाल की नगरी होने से भगवान काल भैरव को उज्जैन नगर का सेनापति भी कहा जाता है। कालभैरव के शत्रु नाश मनोकामना को लेकर कहा जाता है कि यहां मराठा काल में महादजी शिन्दे (सिंधिया)  ने युद्ध में विजय के लिए भगवान को अपनी पगड़ी अर्पित की थी। इसी तरह पानीपत के युद्ध में मराठों की पराजय के बाद तत्कालीन शासक महादजी शिन्दे (सिंधिया) ने राज्य की पुर्नस्थापना के लिए भगवान के सामने पगड़ी रख दी थी। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि युद्ध में विजयी होने के बाद वे मंदिर का जीर्णोद्धार करेंगे। कालभैरव की कृपा से महादजी शिन्दे (सिंधिया) युद्धों में लगातार विजय हासिल करते चले गए। इसके बाद उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। तब से मराठा सरदारों की पगड़ी भगवान कालभैरव के शीश पर पहनाई जाती है! यह आस्था अब परम्परा भी बन चुकी है। ज़िंदगी की परेशानियां जब सभी कोशिशों को नाकाम करती हुईं हराने लगती हैं तो उस समय बेहद मुश्किल होता है खुद को आत्महत्या से बचा पाना। जीत या मौत दो ही रस्ते बाकी बचते हैं तो भैरव बाबा संघर्ष की प्रेरणा देते हैं। इस जंग में अग्रसर होते ही भक्तों को विजय मिलनी शुरू हो जाती है। बहुत ही बेबाकी और दलेरी मिलती है भैरव बाबा की कृपा हो जाए तो। बहिराव स्वयं भी तो ऐसे ही हैं।  

स्वंय ब्रह्मा की गलती पर जब भैरव बाबा को क्रोध आया तब आपने अपने बाँए हाथ के नाखून से उनका पाँचवा सिर काट कर अलग कर दिया। श्री शिव प्रिय काशी और उज्जैन नगरी के कोतवाल, बाबा महाकाल जी के सेनापति , सभी देवी के शक्तिपीठों के साथ रक्षक रुप में विराजमान, उन ऐसे प्यारे भगवान श्री देवाधिदेव महादेव जी के प्रिय मुख्य "भैरव" अवतार के प्राकट्योत्सव  की सभी भक्तों को हार्दिक मंगल बधाई भगवान् भैरव सभी भक्तों के भय का नाश करें। काल भैरव की आरती से हर रोज़ नई शक्ति मिलती है। इस आरती को पढ़ने के लिए आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं। 

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काल भैरव की आरती 

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Friday, October 29, 2021

हमारे जीवन का मूल स्रोत हैं भगवान

भगवान से टूट कर हम कहीं के नहीं रहते 

सोशल मीडिया: 29 अक्टूबर 2021 (इंटरनेट//तंत्र स्क्रीन डेस्क)

बहुत से लोगों के चेहरों पर देखते ही लगता है जैसे वे बहुत मक्कार हैं, बहुत ही शैतान हैं, बहुत ही चालक हैं, बहुत ही झूठे हैं, बहुत ही फरेबी हैं। दूसरी तरफ बहुत से लोग ऐसे भी मिलते हैं जिनके चेहरों पर सदा बहार मुस्कान सी छाई रहती है। उनके चेहरे पर एक दिव्य सी चमक होती है। उनके चेहरेव से नूर बरस रहा होता है। उनकी आंखें  अपनत्व का संदेश दे रही होती हैं।  चेहरे पर इस तरह के प्रभाव अंतर्मन से ही आते हैं। सच कहा जाता है ज्ञान भरे मुहावरों में भी कि अनुभवी  लोग चेहरे से ही सब कुछ देख सकते हैं।  मन का दर्पण सब कुछ चेहरे पर ही दिखा देता है। अभिनय करने वाले भी इसका प्रभाव ज़्यादा देर तक रोक नहीं पाते। आखिर क़ज़ा रहस्य है चेहरे की चमक दमक ह्री सकारत्मकता काऔर शैतानी भरी नकरत्मक्ता का। जीवन सार के अंतर्गत एनर्जी गुरु के तौर पर जाने जाते पं.रमेश चन्द शास्त्री बताते हैं बहुत भी गहरा रहस्य।

पं. रमेश चंद शास्त्री
एक दिलचस्प कहानी भी सुनाते हैं पंडित जी। आप भी पढ़िए इसका संक्षिप्त सा रूप। जब भगवान ने मछली का निर्माण करना चाहा, तो उसके जीवन के लिये उनको समुद्र से वार्ता करनी पड़ी। जब भगवान ने पेड़ों का निर्माण करना चाहा, तो उन्होंने पृथ्वी से बात की। लेकिन जब भगवान ने मनुष्य को बनाना चाहा, तो उन्होंने खुद से ही विचार-विमर्श किया। तब भगवान ने कहा- मुझे अपने आकार और समानता वाला मनुष्य का निर्माण करना है और फिर उन्होंने अपने समान मनुष्य को बनाया।

अब यह बात ध्यान देने योग्य है, यदि हम एक मछली को पानी से बाहर निकालते हैं तो‌ वो मर जाएगी, और जब हम जमीन से एक पेड़ उखाड़ते हैं तो वो भी मर जाएगा। इसी तरह, जब मनुष्य भगवान से अलग हो जाता है, तो वो भी मर जाता है।भगवान हमारा एकमात्र सहारा है। हम उनकी सेवा और शरणागति के लिए बनाए गए हैं। हमें हमेशा उनके साथ जुड़े रहना चाहिए, क्योंकि केवल उनकी कृपा के कारण ही हम जीवित रह सकते हैं।

अतः हम भगवान से सदैव जुड़े रहें। हम देख सकते हैं कि मछली के बिना पानी फिर भी पानी है, लेकिन पानी के बिना मछली कुछ भी नहीं है। पेड़ के बिना प्रथ्वी फिर भी प्रथ्वी ही है, लेकिन प्रथ्वी के बगैर पेड़ कुछ भी नहीं है।‌ इसी तरह, मनुष्य के बिना भगवान, भगवान ही हैं लेकिन बिना भगवान के मनुष्य कुछ भी नहीं है। इस युग में भगवान से जुड़ने का एक सरल उपाय शास्त्रों में वर्णन है - हरिनाम सुमिरन।

राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट

अंत समय पछताएगा जब प्राण जाएंगे छूट

पं. रमेश चंद शास्त्री जहां संजीवनी एस्ट्रो हीलिंग पॉइंट भी चलाते हैं वहीँ माईंड मेजिक नाम से रेगुलर पेज कलम भी लिखते हैं। उन्हें मेडिकल जानकारी भी है एक ही बार-एक ही खुराक-से तंदरुस्त करने की कला में भी वह अभियस्त हैं।

Sunday, February 7, 2021

काल भैरव बाबा की आरती

 आरती में शामिल होने की चाहत सच्चे मन से है तो अवश्य पूरी होगी


जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।

जय काली और गौर देवी कृत सेवा ॥

॥ जय भैरव देवा...॥

तुम्ही पाप उद्धारक दुःख सिन्धु तारक ।

भक्तो के सुख कारक भीषण वपु धारक ॥

॥ जय भैरव देवा...॥

वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी ।

महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी ॥

॥ जय भैरव देवा...॥

तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे ।

चौमुख दीपक दर्शन दुःख खोवे ॥

॥ जय भैरव देवा...॥

तेल चटकी दधि मिश्रित भाषावाली तेरी ।

कृपा कीजिये भैरव, करिए नहीं देरी ॥

॥ जय भैरव देवा...॥

पाँव घुँघरू बाजत अरु डमरू दम्कावत ।

बटुकनाथ बन बालक जल मन हरषावत ॥

॥ जय भैरव देवा...॥

बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावे ।

कहे धरनी धर नर मनवांछित फल पावे ॥

॥ जय भैरव देवा...॥


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Tuesday, January 5, 2021

तंत्र कितना सच-कितना झूठ

तंत्र और चमत्कारों की परतों को खोलती विशेष पोस्ट


लुधियाना
: 5 जनवरी 2021(मीडिया लिंक रविंद्र//तंत्र स्क्रीन)::

तंत्र के नाम पर आम जनता के साथ जितना न्याय हुआ वह भी कम नहीं है लेकिन अज्ञानता और अंधविश्वास के चलते जितना अन्याय तंत्र विद्या के साथ हुआ वह भी कम नहीं हैं।  तंत्र को जानने और समझने के प्रयास धूमिल पड़ते गए और इसे अन्धविश्वास प्रचारित करने वाले अभियान तेज़ होते गए। ऐसी हालत में उन लोगों की तूती बोलती चली गई जो केवल रोज़ी रोटी और कमाई के चक्र में ही इस तरफ आए थे। तंत्र के सही ज्ञाता इस भीड़ से बिलकुल अलग हट कर अपने आप में मग्न रह कर अपना काम करते रहे। कभी हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म में भी तंत्र का बोलबाला था लेकिन बाद में सब मंद पड़ता गया। 

फिर लम्बे अंतराल के बाद ओशो ने तंत्र के गहन रहस्यों को सादगी भरे शब्दों में बिना किसी आडंबर के व्यक्त किया तो लोग उसी तरफ खिंचते चले गए। बहुत से लोगों को ओशो के सन्यास आश्रम में  जा कर आरम्भिक साधनायों से ही कुण्डिलिनी जागरण जैसे आभास होने लगे। उनका स्वास्थ्य ठीक होने लगा और उनका आत्म विश्वास लौटने लगा। इसके साथ आवाज़ की सुंदरता और सुरीलापन बढ़ गया और साथ ही तन मन में छुपे भय, झिझक और अनावश्यक लज्जा भी दूर होने लगी। वे लोग इन साधना पद्धतियों के थोड़े से आरम्भिक अभ्यास के बाद ही खुल कर बात करने लगे। उनका दब्बू स्वभाव ठीक हो गया। 

आज ओशो के निर्वाण के बाद भी अगर बहुत बड़ी संख्या में लोग ओशो के दीवाने हैं तो इसके पीछे एक विशेष कारण तंत्र की साधनाओं का भी है। ओशो ने तंत्र के बारे में फैली भ्रांतियों को दूर करके इसका केवल थोड़ा सा संक्षिप्त रूप अपने अंदाज़ में संशोधित करके अपने आश्रमों में रखा जिससे लोगों को ज़िंदगी में सफलता के फायदे उपलब्ध सकें। सिद्धिओं की बात में किसी ने रुचि भी ली तो आम तौर पर ओशो उसे निरुत्साहित करते और पूछते क्या करोगे इन सिद्धिओं का? जो जन्म हाथ में है उसे सम्भालो आने वाले जन्मों की चिंता मत करो। ओशो के नज़दीक आने वाले साधक कभी सिद्धियों की तरफ आकर्षित नहुँ हुए। इसके बावजूद बहुत से वशिष्ठ लोगों ने पूर्व जन्म की स्मृति के प्रयास ओशो की सलाह पर किए। इनमें महिलाएं भी शामिल रहीं। अतीत में जा कर पूर्व जन्म की कईयों को सुख भी मिला होगा लेकिन जिन्हें सदमा और झटका लगा उनकी गिनती ज़्यादा थी।  लिए ओशो इस बात पर ज़ोर कि पूर्व जन्म देखा  दिखाया जा सकता है लेकिन उस अप्रत्यशित ज़िंदगी को देखने के लिए गहरी मेडिटेशन आवश्यक तांकि देखने  दृष्टा बना रह सके और खुद को उस अतीत से जोड़ कर मौजूदा ज़िंदगी को डिस्टर्ब न कर ले। एक बार एक महिला  गई तो लौट  हाल था। वह अपनी पिछली ज़िंदगी में कोई वेश्या थी और इस ज़िंदगी बहुत  रही थी। वह इस सत्य को  रही थी। फिर उसे अतीत के दर्शन दोबारा  प्रयास भी करने पड़े  तब कहीं जा कर उसकी ज़िंदगी नार्मल हो सकी।  

तंत्र पर चर्चा करते हुए ओशो बहुत सी जादूई लगने वाली घटनाओं का भी ज़िक्र करते हैं। वह बताते हैं कि सीलोन में बौद्ध भिक्षु आग पर चलते है। भारत में भी चलते है, लेकिन सीलोन की घटना अद्भुत है। वे घंटों आग पर चलते है। और जलते नहीं है। आम जनता के लिए यह कोतुहल का विषय है। बहुत ही हैरानीजनक बात लेकिन ओशो के अनुभवी साधक इस को ही पुरी तरह नज़रअंदाज़ कर देते हैं। 

    आग पर चलने या अग्नि स्नान करने जैसी बातों का विश्लेषण करते हुए ओशो पूरो गहराई में जाते हैं। इस पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा:कुछ वर्ष पहले ऐसा हुआ की एक ईसाई मिशनरी या फायर-वॉक देखने गया। यह वे पूर्णिमा की उस रात करते है जब बुद्ध ज्ञान को उपलब्‍ध हुए। क्‍योंकि उनका कहना है कि उस रात जगत को पता चला कि शरीर कुछ भी नहीं है। पदार्थ कुछ भी नहीं है कि अंतरात्‍मा सर्वव्‍यापक है और आग उसे जला नहीं सकती। सिद्धांत की बात वास्तविकता की कसौटी पर परखी गइंऔर खरी उतरी। 

      बात सिद्ध हुई लेकिन यह सब आसान तो नहीं था। इसके लिया कड़ी साधना होती है और परीक्षा भी कदम कदम पर। लेकिन जिन भिक्षुओं को आग पर चलना होता है वे उससे पहले एक वर्ष तक प्राणायाम और उपवास द्वारा अपने शरीर को शुद्ध करते हे। इसके साथ ही अपने मन को शुद्ध करने के लिए इसे पूरी तरह से खाली करने के लिए वे ध्‍यान करते हैं कि वे शरीर नहीं है। एक वर्ष वे लगातार तैयारी करते है। एक वर्ष तक पचास-साठ भिक्षुओं का समूह यह भाव करता रहता है, कि वे अपने शरीरों में नहीं है। इस लम्बे अभ्यास के बाद बात उनके दिल और दिमाग में घर करने लगती है की वे शरीर नहीं हैं। वे केवल आत्मा हैं और आत्मा को जलाया नहीं जा सकता। 

    गौरतलब है कि एक वर्ष लंबा समय होता है। हर क्षण केवल एक ही बात सोचते हुए कि वे अपने शरीरों में नहीं है। लगातार एक ही बात दोहराते हुए कि शरीर एक भ्रम है। वे ऐसा ही मानने लगते है। तब भी उन्‍हें आग पर चलने के लिए बाध्य नहीं किया जाता। परम्परा और नियमों के मुताबिक उन्‍हें आग के पास लाया जाता है। और जो भी सोचता है कि वह नहीं जलेगा, वह आग में कूद पड़ता है। कुछ ही क्षणों में लगने वाली इस छलांग का आधार केवल यही विश्वास होता है कि वह नहीं जलेगा।  होगा और उसे सचमुच कुछ नहीं होगा। जो कुछ दुसरे लोग संदेह करते रह जाते है झिझकते है। उन्‍हें आग में नहीं कूदने दिया जाता;क्‍योंकि यह सवाल आग के जलाने या जलने का नहीं है। यह उनके संदेह का सवाल है। अगर वे जरा सा भी झिझकते है तो उन्‍हें रोक दिया जाता है। तो साठ लोग तैयार किए जाते है। और कभी बीस, कभी तीस लोग आग में कूदते है। और बिना जले घंटो-घंटों उसमें नाचते रहते है। तंत्र और विश्वास का यह एक ऐसा अदभुत प्रस्तुतिकरण है जो एक खेल की तरह सामने आता है। 

इस संबंध में चर्चा करते हुए ओशो आगे चल कर तर्क और विश्वास की बातें भी करते हैं। मैं तुम्‍हें एक कहानी कहता हूं। जीसस ने अपने शिष्‍यों को कहा कि वे नाव से उस झील के दूसरे किनारे चले जाएं जहां वे सब ठहरे हुए थे। और वे बोले,’मैं बाद में आऊँगा।’ वे लोग चले गये। और दूसरे किनारे की और जा रहे थे तो बड़ा तेज तूफान आया। उथल-पुथल मच गई और लोग भय के मारे घबरा गये। नाव थपेड़े खा रही थी और वे सब रो रहे थे, चीखने-पुकारने लगे, चिल्‍लाने लगे। ‘जीसस हमें बचाओ।’ ऐसा सम्भव ही था और ऐसा ही हुआ भी। 

    वह किनारा जहां जीसस खड़े थे सचमुच में काफी दूर था। लेकिन जीसस आए। कहते है कि वे पानी पर दौड़ते हुए आये। और पहली बात उन्‍होंने शिष्‍यों को यह कहीं कि, ‘कम भरोसे के लोगो, क्‍यों रोते हो।’ क्‍या तुम्‍हें भरोसा नहीं है?’ वे तो भयभीत थे। जीसस बोले, ‘अगर तुम्‍हें भरोसा है तो नाव से उतरो और चलकर मेरी और आओ।’ वह पानी पर खड़े हुए थे। शिष्‍यों ने अपनी आंखों से देखा कि वे पानी पर खड़े है। लेकिन फिर भी यह मानना कठिन था। जरूर अपने मन में उन्‍होंने सोचा होगा कि ये कोई चाल है। या हो सकता है कोई भ्रम है। या यह जीसस ही न हो। शायद यह शैतान है जो उन्‍हें कोई प्रलोभन दे रहा है। तो वे एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। कि कौन चलकर जाएगा। जब खुद पर विश्वास न हो तन भी इंसान तबाह हो जाता है और जब जिस पर आस्था है उस पर भी विश्वास न हो तो भी इंसान तबाही की तरफ चल देता है। 

      जीसस की आवाज़ सुन कर फिर एक शिष्‍य नाव से उतर कर चला। और सच में वह चल पाया। लेकिन इसके बावजुद वह हैरानी से भर गया। वह तो अपनी आंखों पर विश्‍वास न कर सका कि वह पानी पर चल रहा था। आशंका आते ही चमत्कार भी टूट गया। जब वह जीसस के करीब आया तो बोला, ‘कैसे? यह कैसे हो गया?’ तत्‍क्षण पूरा चमत्‍कार खो गया। ‘कैसे?’—और वह डूबने लगा। जीसस ने उसे बाहर निकाला और बोले, ‘कम भरोसे के आदमी,तू यह कैसे का सवाल क्‍यों पूछता है।’ इस शंका ने ही सब कुछ गंवा दिया था। 

     ऐसा अक्सर होता है लेकिन फिर भी इस आशंका से मुक्त हो पाना आसान नहीं होता। बुद्धि ‘क्‍यों?’ और ‘कैसे?’ जैसे बहुत से सवाल पूछती है। बुद्धि पूछती है। बुद्धि प्रश्‍न उठाती है। बुद्धि का काम ही शायद यही है। भरोसा है सब प्रश्‍नों को गिरा देना। अगर तुम सब प्रश्‍नों को गिरा सको और भरोसा कर सको तो यह विधि तुम्‍हारे लिए चमत्‍कार है। इस लिए बड़ी बात यह विधि है तो उससे भी बड़ी बात है भरोसा। 

इस तरह के करिश्मे आज भी दिखाई दे  जाते हैं। कुम्भ मेले को रिपोर्टिंग करने आयी BBC की टीम ने काफी कुछ ऐसा ही पाया। इस टीम को पता चला कि कई ख़ास किस्म के साधू कुम्भ स्नान से पहले अपने शरीर को अग्नि देवता को समर्पित करते हैं। बीबीसी जैसा ज़िम्मेदार मीडिया  बिना किसी जांच के कैसे रहता_ऐसे साधुओं का पता चला . . तो .. उन्होंने वीडियो शूट किया .. आग की गरमी इतनी थी के उनको दूर जाना पड़ा पर साधु को कुछ नहीं हुआ।  सवाल ज़ह भी उठा कि कहीं कपड़ो में कुछ केमिकल तो नहीं है? इसकी भी जाँच की गई पर कुछ नहीं मिला। केवल और केवल उन साधुओं का ध्यान मंत्रोचार में ही था। तंत्र मंत्र और साधना की दुनिया में इसे ही सिद्ध साधु कहते  हैं। कुम्भ के मेले में मीडिया ने ऐसे  400 साधु सन्यासियों का मिलन देखा गया। ये हे हिन्दू धर्म से सबंधित साधु और इस धर्म की महानता। कहा जाता है कि BBC की विज्ञान  सबंधित टीम ने भी इसका परीक्षण किया। इसे उनके चैनल ने किसी रात को टेलीकास्ट भी किया था। इसी तरह के कई मामले देखने में आते रहते हैं।  

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तिवारी जी ने बताया लक्ष्मी पाने के लिए गारंटी जैसा तंत्र प्रयोग 

Friday, January 1, 2021

आखिर तंत्र विज्ञान है क्या?

 ओशो के शब्दों से शायद पा सकें 

 तन्त्र के सभी आयामों की कुछ झलक 

तंत्र के समर्थक एक तरफ हैं और विरोधी दूसरी तरफ। विरोधियों में वाम दलों से जुड़े तर्कशील संगठन भी शामिल हैं। इस दूरी और हकीकत के बाद यह बात सत्य है की ओशो की बातें अक्सर विरोधिओं के दिलों में भी उतर जाती हैं। इस पोस्ट में शामिल आलेख ओशो के प्रवचनों  पर आधारित  है और ओशो एरिना से साभार लिया गया है। इस पर आपके  इंतज़ार रहेगी ही। तंत्र पर स्वस्थ और वैज्ञानिक सोच बन सके  प्रयास। --मीडिया लिंक रविंद्र 

अक्षर से क्षर की यात्रा यंत्र, क्षर से अक्षर की यात्रा मन्त्र, अक्षर से अक्षर की यात्रा तंत्र।

देह है यंत्र। दो देहों के बीच जो संबंध होता है वह है यांत्रिक। सेक्स यांत्रिक है। कामवासना यांत्रिक है। दो मशीनों के बीच घटना घट रही है।

मन है मंत्र। मंत्र शब्द मन से ही बना है। जो मन का है वही मंत्र। जिससे मन में उतरा जाता है वही मंत्र। जो मन का मौलिक सूत्र है वही मंत्र।

तो देह है यंत्र। देह से देह की यात्रा यांत्रिक–कामवासना।

मन है मंत्र। मन से मन की यात्रा मांत्रिक। जिसको तुम साधारणत: प्रेम कहते हो–दो मनों के बीच मिल जाना। दो मनों का मिलन। दो मनों के बीच एक संगीत की थिरकन। दो मनों के बीच एक नृत्य। देह से ऊपर है। देह है भौतिक, मंत्र है मानसिक, मनोवैज्ञानिक, सायकॉलॉजिकल।

और आत्मा है तंत्र। दो आकाशों का मिलन। अक्षर से अक्षर की यात्रा। जब दो आत्मायें मिलती हैं तो तंत्र – न देह, न मन। तंत्र ऊंचे से ऊंची घटना है। तंत्र परम घटना है।

तो इससे ऐसा समझो:

देह–यंत्र, सेक्यूअल, शारीरिक।

मन–मंत्र, सायकॉलॉजिकल, मानसिक।

आत्मा– त्र, कॉस्मिक, आध्यात्मिक।

ये तीन तल हैं तुम्हारे जीवन के। यंत्र का तल, मंत्र का तल, तंत्र का तल। इन तीनों को ठीक से पहचानो। और तुम्हारे हर काम तीन में बंटे हैं।

फिर बहुत विरले लोग हैं–कृष्ण और बुद्ध और अष्टावक्र–बहुत विरले लोग हैं, जो तांत्रिक रूप से जीते हैं। जिसका प्रतिपल दो आकाशों का मिलन है–प्रतिपल! सोते, जागते, उठते, बैठते जो भी उसके जीवन में हो रहा है, उसमें अंतर और बाहर मिल रहे हैं, परमात्मा और प्रकृति मिल रही है, संसार और निर्वाण मिल रहा है। परम मिलन घट रहा है।

तो तुम अपनी प्रत्येक क्रिया को यांत्रिक से तांत्रिक तक पहुँचाने की चेष्टा में लग जाओ।

(अष्टावक्र महागीता, भाग #6, प्रवचन #78)