ओशो के शब्दों से शायद पा सकें
तन्त्र के सभी आयामों की कुछ झलक
देह है यंत्र। दो देहों के बीच जो संबंध होता है वह है यांत्रिक। सेक्स यांत्रिक है। कामवासना यांत्रिक है। दो मशीनों के बीच घटना घट रही है।
मन है मंत्र। मंत्र शब्द मन से ही बना है। जो मन का है वही मंत्र। जिससे मन में उतरा जाता है वही मंत्र। जो मन का मौलिक सूत्र है वही मंत्र।
तो देह है यंत्र। देह से देह की यात्रा यांत्रिक–कामवासना।
मन है मंत्र। मन से मन की यात्रा मांत्रिक। जिसको तुम साधारणत: प्रेम कहते हो–दो मनों के बीच मिल जाना। दो मनों का मिलन। दो मनों के बीच एक संगीत की थिरकन। दो मनों के बीच एक नृत्य। देह से ऊपर है। देह है भौतिक, मंत्र है मानसिक, मनोवैज्ञानिक, सायकॉलॉजिकल।
और आत्मा है तंत्र। दो आकाशों का मिलन। अक्षर से अक्षर की यात्रा। जब दो आत्मायें मिलती हैं तो तंत्र – न देह, न मन। तंत्र ऊंचे से ऊंची घटना है। तंत्र परम घटना है।
तो इससे ऐसा समझो:
देह–यंत्र, सेक्यूअल, शारीरिक।
मन–मंत्र, सायकॉलॉजिकल, मानसिक।
आत्मा– त्र, कॉस्मिक, आध्यात्मिक।
ये तीन तल हैं तुम्हारे जीवन के। यंत्र का तल, मंत्र का तल, तंत्र का तल। इन तीनों को ठीक से पहचानो। और तुम्हारे हर काम तीन में बंटे हैं।
फिर बहुत विरले लोग हैं–कृष्ण और बुद्ध और अष्टावक्र–बहुत विरले लोग हैं, जो तांत्रिक रूप से जीते हैं। जिसका प्रतिपल दो आकाशों का मिलन है–प्रतिपल! सोते, जागते, उठते, बैठते जो भी उसके जीवन में हो रहा है, उसमें अंतर और बाहर मिल रहे हैं, परमात्मा और प्रकृति मिल रही है, संसार और निर्वाण मिल रहा है। परम मिलन घट रहा है।
तो तुम अपनी प्रत्येक क्रिया को यांत्रिक से तांत्रिक तक पहुँचाने की चेष्टा में लग जाओ।
(अष्टावक्र महागीता, भाग #6, प्रवचन #78)
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