Friday, March 15, 2024

महिला तांत्रिक बहुत ज़िम्मेदारी से सहेज रही हैं तंत्र की गुप्त विद्या

बहुत सख्त किस्म का अनुशासन होता है तंत्र के लाइफ स्टाईल में 


हरिद्वार
: 15 मार्च 2024: (मीडिया लिंक//तंत्र स्क्रीन डेस्क)::

भारत में महिला तांत्रिकों और महिला अघोरीयों  का जीवन कैसा है और उनकी शक्ति या सिद्धि कैसी है इसे जानने की जिज्ञासा मीडिया से जुड़े हम सभी लोगों को भी थी लेकिन यह सब इतना आसान भी तो नहीं था। बिना उनकी आज्ञा के उनके शिविर, आश्रम या रिहायशी ठिकानों के नीदीक जाना न तो उचित होता है न ही खतरों से खाली। उन्हें किसी भी छोटी सी बात पर नाराज़ करना कई मुश्किलें खड़ी कर सकता है। 

ज़िन्दगी का इत्तफाक कहो या फिर किस्मत की बातें कि मन की इच्छाएँ अगर शिद्दत से भरी हुई हों तो वे पूर्ण भी हो जाती हैं .इसी तरह रूटीन के जीवन में भी कभी कभार कहीं न कहीं किसी न किसी महिला साधवी से भेंट हो भी जाती रही लेकिन वह बहुत संक्षिप्त सी ही रहती। प्रणाम और नमस्कार से ज़्यादा कभी कभी उनकी तप सथली का कुछ प्रसाद भी मिल जाता। उनके इस प्रसाद में कई बार ताज़े फल भी शामिल होता कई बार सूखे फल भी। कई बार जीवन के कुछ गुर भी लेकिन मीडिया मकसद से तन्त्र पर वार्ता या तो शुरू ही न हो पाती या फिर अधूरी छूट जाती। 

इस तरह की भेंट के दौरान साधना की गुप्त बातों की गहन चर्चा तो किसी भी तरह से शायद सम्भव भी नहीं थी। बिना कोई ख़ास चर्चा वाली ऐसी भेंट हरिद्वार के जंगलों में भी हुई, दिल्ली में भी और पंजाब में कुछ स्थानों पर भी। इनका रोमांच और रहस्य बहुत यादगारी भी रहा। 

इन मुलाकातों के दौरान विश्व हिन्दु परिषद के उस समय के सक्रिय नेता मोहन उपाध्याय जी भी साथ रहते रहे। उनकी पहल और मार्गदर्शन से ही यह सम्भव होता रहा। मोहन जी की असमय मृत्यु से यह सारा मिशन और प्रोजेक्ट भी अधर में ही छूट गया। बस इतना ही याद रहा कि दिव्यता की मूर्ती लगने वाली इन महिलाओं का रहन सहन पूरी गहनता से अंतर्मन तक प्रभावित करता रहा। उनकी बातें बहुत देर तक मानसिक जगत में गूंजती भी रहती।  उनके पास बेउठने एक ऊर्जा का अहसास करवाता रहा। 

भारत के हृदय में, जहाँ प्राचीन परंपराएँ और मान्यताएँ बहुत ही गहरी हैं, वहाँ महिलाओं का यह एक छोटा, गुप्त समुदाय लम्बे समय से मौजूद है। हालांकि वे आपकी औसत गृहिणियां या माताएं तो नहीं होती हैं, लेकिन उनके पास एक ऐसी शक्ति ज़रूर है जिसके बारे में अधिकांश कई बार पुरुष साधक भी केवल सपना ही देख सकते हैं। उनके सामीप्य से मुँह से जय माता दी निकलता या फिर कोई और आध्यात्मिक सम्बोधन तो वह हमारे अतीत और रूटीन से बहुत ही अलग होता। तंत्र की उन महिला साधिकाओं से बात करते हुए उनमें से मातृ शक्ति का स्वरूप कई बार पूरी तरह से उभर कर सामने भी आता है। जहां वात्सल्य का अहसास भी होता। यह सब एक आशीर्वाद जैसा अहसास भी होता है। ऐसा बहुत कुछ अनुभव होने लगता जो अलौकिक जैसा होता। तंत्र में महिला तांत्रिकों के योगदान पर तंत्र स्क्रीन की यह विशेष प्रस्तुति उन्हीं अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने का प्रयास है। 

तंत्र के कठिन रास्तों पर निकलीं इन महिलाओं को अक्सर महिला तांत्रिक और महिला अघोरी के नाम से भी जाना जाता है। उनका पूरा जीवन और उनका पूरा लाइफ स्टाईल तंत्र और अघोर की साधना के लिए समर्पित हुआ महसूस होता है।

तंत्र और अघोर पथ ये दो ऐसे अलग अलग और गूढ़ आध्यात्मिक मार्ग हैं जो समाज के मानदंडों और पूर्व कल्पित धारणाओं को ज़ोरदार चुनौती भी देते हैं। ईश्वरीय सत्ता के साथ सीधा राब्ता उनका लक्ष्य रहता है।  इसी सर्वोच्च सत्ता के साथ उनका तारतम्य जुड़ा रहता है। वे अकेले में जब बात करती हैं तो लगता है सामने कोई नहीं है लेकिन उनको इसका पूरा सतर्क अहसास रहता है कि वे कहाँ हैं और किस्से बात कर रही हैं। हमारे पास पहुंचने का भी उन्होंने नोटिस लिया और साथ ही हमारे मन की एक दो बातें भी उन्होंने उसी सर्वोच्च सत्ता के सामने उजागर कर दी और कहा लो अब यह भी यहाँ पहुँच गया आपके दरबार में इसका संकट दूर कर दो। इसके साथ ही हमें यह भी बताया कि जीवन की यह समस्या अब इस दिन या तारीख से समाप्त समझो। ऐसी बहुत सी बातें होती रहीं जिनका पता केवल हमें था और जिनकी गहन चिंता भी केवल हमें थी।   

दिलचस्प बात है कि अपने पुरुष समकक्षों के विपरीत, जो अक्सर अधिक ध्यान भी आकर्षित करते हैं, ये महिलाएं अपनी प्रथाओं और ज्ञान को दुनिया की नज़रों से छिपाकर रखने में अधिक कामयाब रही हैं। वे आधुनिक जीवन की हलचल से दूर सुदूर गांवों और आश्रमों में रहती हैं। उनकी साधना पद्धति भी अक्सर पूरी तरह से गुप्त होती है। उनके दिन गहन आध्यात्मिक अभ्यास, ध्यान और अध्ययन में व्यतीत होते हैं। उन्हें कम उम्र में ही तंत्र और अघोर के रहस्यों की शिक्षा दी जाती है, अक्सर उनकी मां या दादी द्वारा, जिन्हें पीढ़ियों से यह ज्ञान विरासत में मिला है। इस साधना की चमक उनकी आँखों में देखी जा सकती है और उनके चेहरों पर भी। उनकी बॉडी  लैंग्वेज साथ साथ इस बात का अहसास करवाती रहती है कि उनके शब्दों, बोलों, उनकी उंगलियों और आशीर्वाद की मुद्रा में उठे हाथों से कोई न कोई शक्ति तो प्रवाहित हो ही रही है। उनकी रहस्य्मय मुस्कान और गुस्सा आने पर आँखों में अपनेपन वाली वो थोड़ी सी घूरने वाली अनुभूति भी बिना बोले बहुत कुछ बताती कि किस किस बात से दूर रहना है। 

आम लोग उन्हें भयानक स्वरूप वाली या ऐसा कुछ भी समझें या कहें लेकिन महिला तांत्रिकों और महिला अघोरियों का स्थानीय आबादी के लोग पूरी तरह से सम्मान भी करते हैं। इस प्रेम और सम्मान के साथ साथ ये लोग उनसे एक तरह से डरते भी हैं। यह ख़ामोशी भरा मूक भय होता है। बिना किसी आवाज़ के अपना असर दिखाता  है। आसपास रहने वाले लोग उन्हें अपना रक्षक ही समझते हैं। ज़िन्दगी की मुश्किलों और संकटों से घबराए हुए बहुत से लोग दूर दराज से भी उनके पास आ कर सिर झुकाते हैं। तंत्र और अध्यात्म में बहुत से लोग बेहद पढ़े लिखे भी हैं। दुनिया की पढाई समाप्त करने के बाद उन्हें लगा इस पढ़ाई में कुछ नहीं रखा अब इस क्षेत्र में कुछ अभ्यास ज़रूरी हैं। 

तंत्र की दुनिया के ज्ञाता इस संबंध में जो बताते हैं वह कई बार हैरान कर देता है। ऐसा कहा जाता है कि तंत्र के इन साधकों के पास तत्वों, आत्माओं और यहाँ तक कि मृत्यु पर विजय जैसी बहुत ही कठिन और अत्यधिक सिद्धि और शक्ति भी होती है। वे अपनी क्षमताओं का उपयोग बीमारों को ठीक करने, जादू-टोना करने और खोई हुई आत्माओं का मार्गदर्शन करने के लिए करते हैं। हालाँकि, उनकी शक्ति की भारी कीमत भी चुकानी पड़ती है।  उनकी साधना और भी कठिन हो जाती है। इस शक्ति का अर्जित करना भी आसान कहां होता है। 

उन्हें एक सख्त आचार संहिता बनाए रखनी होती है। इस अनुशासन का वे सभी लोग पालन भी करते हैं। साधना  के कई पड़ावों में यौन सुख और यहां तक कि दूसरों को छूने से भी बचना होता है। वे कठोर जीवन जीते हैं, अक्सर साधना मार्ग के प्रति अपनी भक्ति के प्रतीक के रूप में केवल मृतकों की राख पहनते हैं। हर सुख सुविधा को पलक झपकते ही अपने पास उपलब्ध करवा लेने की इस क्षमता के बावजूद यह तांत्रिक अघोरी महिलाएं बेहद कठिन जीवन जीती हैं वो भी बिना किसी शिकायत के। महिला तांत्रिक बहुत ज़िम्मेदारी से सहेज कर रख रही हैं तंत्र की गुप्त विद्या को। बेहद कठिन और लम्बे उपवास इनकी शरीरक और मानसिक क्षमता को मज़बूत बना देते हैं। महिला तांत्रिक बहुत ज़िम्मेदारी से सहेज कर रख रही हैं तंत्र की गुप्त विद्या को

अपने एकांतवास के बावजूद, ये महिलाएं दुनिया से अलग-थलग नहीं रहती हैं। वे अक्सर जरूरतमंद लोगों को अपनी सेवाएं देने के लिए दूसरे गांवों और शहरों की यात्रा भी करती हैं। वे आध्यात्मिक और सांसारिक लोगों के बीच मध्यस्थ के रूप में भी कार्य करते हैं। आधुनिक जीवन की हलचल से दूर कहीं बस्ती है इन  महिला तांत्रिकों की दुनिया जहां एक अनाम सा आकर्षण भी पैदा हो जाता है। वहां की हवा में कोई अलौकिक सी सुगंध भी महसूस होने लगती है। 

इसके साथ ही यह तांत्रिक लोग उन लोगों के लिए मार्गदर्शक और संरक्षक के रूप में कार्य करते हैं जो उनकी सलाह चाहते हैं। वे सभाओं और समारोहों की मेजबानी करने के लिए भी जाने जाते हैं जहां वे एक-दूसरे के साथ अपना ज्ञान और बुद्धिमत्ता साझा करते हैं। इस सबके बावजूद उनकी साधना और जीवन शैली तकरीबन गुप्त ही रहती है। ऐसी बहुत सी बातें हम अन्य लेखों में आपके सामने लाने का प्रयास करते रहेंगे। 

Thursday, June 15, 2023

अघोरी बाबाओं की कृपा भी कमाल की होती है

लेकिन उनके क्रोध से बचना ही बुद्धिमता होती है 

अघोरी बाबाओं की प्रतीकात्मक तस्वीरें 

लुधियाना: 15 जून 2023: (रेक्टर कथूरिया//मीडिया लिंक रविंद्र//तंत्र स्क्रीन डेस्क)::

एक थे जगजीत सिंह एडवोकेट। पेशे से वकील थे। वही वकालत जिसमें कदम कदम झूठ बोलना पड़ता है।  झूठ के बिना शायद इस प्रोफेशन का चलना ही मुश्किल हो जाए। इस हकीकत के बावजूद एडवोकेट जगजीत सिंह ने झूठ से ज़िंदगी के हर कदम पर एक दूरी बना रखी थी। नफा हो या नुकसान वह इस दुरी को हमेशां कायम रखते। यह सब एक चमत्कार जैसा ही तो था लेकिन सच्चाई की गरिमा और चमक केवल उनके चेहरे पर ही नहीं बल्कि पूरी शख्सियत में हुआ करती थी। उनके  हर कदम में जादूभरा असर हुआ करता था। उनसे हमारे परिवार का राब्ता उनकी लेखनी के कारण था। वह लोकप्रिय समाचार पत्र पंजाब केसरी और उन्हीं के पंजाबी  प्रकाशन जग बाणी में नियमित तौर पर एक स्तम्भ लिखा करते थे। उनके इस कालम में अक्सर अध्यात्म की दुनिया से  बातें होतीं। साधना की चर्चा रहती और जिन साधु बाबाओं से कभी उनकी भेंट होती उनकी चर्चा रहती। 

वह बताते थे एक बार एक अघोरी बाबा ने एक जगह आसान जमा लिया। इतने में द्वार खुला और एक महिला बाहर आई।अघोरी बाबा ने भोजन की इच्छा व्यक्त की। उस महिला ने थोड़ी देर पहली ही बना कर रखी दो रोटियां बाबा को सम्मान से दे दी। 

भोजन करके उसे आशीर्वाद दे ही रहे थे कि पास में बैठा उनका कुत्ता उनकी तरफ ही मुंह कर के भौंकने लगा। ऐसे लगता था शायद उन्हें कुछ कह रहा हो। बाबा ने आंखें बंद की और कुत्ते की तरफ देखते हुए उसे बोले अच्छा अच्छा दे देता हूं। इतना कह कर अपनी पोटली में से एक बेशकीमती लाल निकाल कर उस महिला को दे दिया। साथ ही कहा इसे अपने बेटे के गले में रखना उसकी सुरक्षा होती रहेगी। 

इतने में ही घर में से फोन की घंटी बजी तो वह महिला क्षमा मांग कर घर के अंदर गई लेकिन साथ ही कह कर गई कि वह फोन सुन कर अभी आती है। अंदर जा कर फोन सुना तो सन्न  रह गई। फोन पर एक बुरी खबर थी। जिस जहाज़ से उसके दोनों बेटे घर लौट रहे थे वह हादसे का शिकार हो गया था। इस हादसे में उसका एक बेटा मर गया  बताया गया लेकिन एक बेटे को बचा लिया गया। फोन सुन कर उसे बाबा  समझ आई। 

वह रोते रोते बाहर आई तो बाबा का कुत्ता फिर से भौंकने लगा। इस बार कुछ ज़्यादा ऊंची आवाज़ में भौंक रहा था। बाबा ने फिर उसे शांत करने के लिए हाथ खड़ा किया और कहा अच्छा अच्छा दूसरा भी दे देता हूं। यह कह कर बाबा ने अपने कंधे से उतार कर रखे झोले में से फिर वही पहले वाली पोटली निकाली और और दूसरा लाल निकाल कर भी दे दिया। साथ ही बोले भैरव बाबा नाराज़ हो रहे हैं और कह रहे हैं दूसरा लाल भी दे दो। ले अब तेरे दूसरे लाल को भी कुछ नहीं होगा। इस पर महिला ने रोते हुई फोन पर सुनी सारी खबर बाबा को बताई। बाबा फिर मुस्कराते हुए बोले चिंता मत कर तेरे दुसरे लाल को भी कुछ नहीं होगा। दोनों सुरक्षित तेरे पास रहेंगे। 

इतने में फिर से फोन की घंटी बजी। उन दिनों मोबाईल नहीं हुआ करते थे। महिला फोन सुनने के लिए भाग कर घर कर अंदर गई। इस बार फोन था आपके दोनों बेटे सुरक्षित हैं। पहले हमें बेहोशी के कारण धोखा हुआ था। महिला की आँखों से आंसुओं की धरा नेह निकली। वह आँखें पौंछती हुई बाहर आई और बाबा के चरणों पर गिर पड़ी। बाबा ने उन्हें झोले से फिर कुछ प्रसाद दिया और कहना अपने ाप्ति और दोनों बेटों को भी खिलाना सब ठीक रहेगा। इसके साथ ही आशीर्वाद देते हुए उठ खड़े हुए। इस दर से मिली वो दो रोटियां तो शायद बहाना थीं। अघोरी बाबा उस महिला के दोनों बेटों को जीवनदान देने आए थे। 

क्या होते हैं अघोर पंथ के गहन रहस्य? कौन होते हैं अघोरी? कैसा होता है इनका जीवन? इसकी चर्चा किसी अलग पोस्ट में जल्दी ही की जाएगी।

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Tuesday, June 13, 2023

तंत्र की गहन शिक्षा और साधना ही दे सकती है सिद्धियों की कृपा

Tuesday 13th June 2023 at 05:45 PM

 उचित मार्गदर्शन के बिना न रखें इन रास्तों पर एक भी कदम 

लुधियाना: 13 जून 2023: (तंत्र स्क्रीन डेस्क):: 

*सुयोग्य गुरु का मार्गदर्शन ही दे सकता है पूरा लाभ 

*क्या तंत्र साधना से आयु और स्वास्थ्य के लिए हो सकता है लाभ?

*क्या इस रह पर चल कर मिल सकती है दौलत और शोहरत?

*अगर मन में सच्ची प्यास है तो सच्चा गुरु स्वयं आपको खोज लेगा!

योग, तंत्र और सिद्धि हमारे समय से भी पहले से उपयोग में हैं। यह विज्ञान की एक अलौकिक सी शाखा है जो अधिकतर लोग नहीं जानते हैं और जिसके बारे में शायद बहुत से लोगों की भ्रमित धारणाएं होती हैं। तंत्र और सिद्धि के इस्तेमाल से लोग अपनी आयु और स्वास्थ्य को स्थिर और स्वस्थ रखते हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में हम सही तरीके से तंत्र और सिद्धियों का इस्तेमाल करना सीखेंगे जो आपके जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है। इस ब्लॉग पोस्ट के जरिए हम आपको तंत्र और सिद्धियों के बारे में संपूर्ण जानकारी देंगे जो आपकी आयु और स्वास्थ्य की देखभाल करने में मदद करेगी।

तंत्र और सिद्धि क्या होते हैं? तंत्र साधना से शक्ति भी मिलती है और सिद्धि भी लेकिन रास्ता कम कठिन नहीं होता। तंत्र की साधना के लिए पहले स्वयं में शरीरक बल की भी आवश्कता पड़ती है, बुद्धि बल की भी और मनोबल की भी। तब कहीं जा कर आत्मिक बल सक्रिय होता है और साधना में सफलता मिलने के आसार बनने लगते हैं।  आम और कमज़ोर इन्सान तो आरम्भिक दौर में ही डर कर इस मार्ग पर बढना छोड़ देता है। इस मार्ग पर निरंतर चलने के लिए शक्तियों के भंडार अर्जित करने पड़ते हैं। तंत्र साधना अपने घर में हो, किसी सुनसान जगह पर बने किसी मन्दिर में या फिर श्मशान में-हर जगह पर कदम कदम पर परीक्षा जैसी स्थितियां बनती हैं। तंत्र साधनामें अगर साधक बुरी तरह डर जाए तो हार्ट अटैक जैसी बहुत सी समस्याएं पैदा होने के खतरा बना रहता है इस लिए अपने शरीर की रक्षा के उपाय सबसे पहले कर लिए जाने चाहियें।  

गौरतलब है कि तंत्र और सिद्धि एक वैज्ञानिक प्रक्रिया ही है जो अधिकतर भारतीय धर्म और तंत्र के अनुयायियों द्वारा उपयोग की जाती है। अब यह बात अलग है कि इसका अधिकतर विज्ञान धीरे धीरे लुप्त होता चला गया। तंत्र की ये सभी प्रक्रियाएं धार्मिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाती रहीं हैं और विभिन्न साधनों व साधकों द्वारा की जाती हैं जो स्वयं में अद्भुत शक्तियों को लाया करते थे। 

तंत्र और सिद्धि का उपयोग व्यक्तिगत उन्नति और शारीरिक आरोग्य के लिए किया जाता है। तन,  आत्मा  शक्तियां बढ़ाना बहुत पहले बहुत ज़रूरी समझा जाता था। इसके अलावा, इन प्रक्रियाओं का उपयोग तनाव से मुक्ति, शांति और अधिक समझदार जीवन जीने में मदद मिलती है। इन प्रक्रियाओं का उपयोग प्राकृतिक तरीकों से अस्थिर मनोवैज्ञानिक समस्याओं से निपटने में भी किया जाता है। 

अब उल्लू के शरीर का कौन सा भाग कब और कहां काम आता है इसका पता तो बाद में किया जा सकता है लेकिन उल्लूक सिद्धि से भी पहले और अन्य सबसे पहले अपने स्वयं के शरीर का हर रहस्य पता लगाना ज़रुरी होता है। मानव शरीर की सरंचना इतनी दुर्लभ है कि विकसित विज्ञान आज भी इसके सामने चकरा जाता है। शरीर के बहुत से रहस्य ऐसे हैं जिनकी सही जानकारी अगर पता चल जाए तो इसे साधना सहज हो जाता है। शरीर और मन को साधने की प्रक्रिया के दौरान ही सिद्धियों जैसा आभास होने लगता है। सर्दी, गर्मी और मौसम की मार बेअसर होने लगती है। बातों में मधुरता के साथ साथ एक दैवी पभाव भी आ जाता है जिससे सद्ध्क की हर बात हर जगह मानी जाने लगती है।

इस शुरूआती साधना के कुछ पड़ाव पूरे करने के बाद ही साधना की कठिनाई और स्तर भी बढ़ने लगते हैं। तन्त्र और सिद्धियों के विभिन्न उपयोग विभिन्न तरह के अनुभव देने लगते हैं। बौद्ध तंत्र और जैन तंत्र साथ मुस्लिम तंत्र भी लोकप्रिय रहा है। 

तंत्र और सिद्धियों का सही उपयोग चिरआयु रहने और पूरी तरह से स्वस्थ रहने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इन तंत्रों और सिद्धियों के विभिन्न उपयोग हैं जो आप अपने जीवन में शामिल कर सकते हैं। एक बहुत सामान्य उपयोग है तंत्रों और सिद्धियों का उपयोग मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए। आप अपनी चिंताओं को कम करने के लिए तंत्रों और सिद्धियों का उपयोग कर सकते हैं। इन तंत्रों और सिद्धियों का उपयोग आपको एक अधिक सकारात्मक जीवन जीने में मदद कर सकता है। आप तंत्रों और सिद्धियों का उपयोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ संयोजित कर सकते हैं। इन तंत्रों को उपयोग करने की एक और विशेषता है कि आप इन्हें अपने घर में भी उपयोग कर सकते हैं। आप इन तंत्रों का उपयोग घर की सफाई, कुछ विशेष उद्योगों में सफलता, स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए कर सकते हैं। इन तंत्रों का उपयोग आपके जीवन को आसान बना सकता है। आप इन तंत्रों का उपयोग अपनी जरूरत के अनुसार कर सकते हैं। आप अपने दुखों को कम करने के लिए सिद्धियों का उपयोग कर सकते हैं। सिद्धियों का उपयोग आपको बड़े सपने देखने में मदद कर सकता है। तंत्रों और सिद्धियों का उपयोग करने से आप खुशहाल और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। इसका अनुभव थोड़ी सी साधना के बाद ही होने लगता है। निरंतर प्रयास की अपने आप में ही काफी महत्ता होती है। 

इस तरह तंत्र और सिद्धियों के लाभ आयु और स्वास्थ्य के लिए लोकप्रिय भी रहे हैं। ज्योतिष, वास्तु, और तंत्र-मंत्र सिद्धि आदि को दुनिया भर में लोग बहुत शक्तिशाली मानते हैं। वे अपने जीवन की समस्याओं को हल करने के लिए इनका सही इस्तेमाल करते हैं। तंत्र और सिद्धियों के इस्तेमाल से आप अपने जीवन में बदलाव ला सकते हैं और अपनी आयु और स्वास्थ्य को भी सुधार सकते हैं। तंत्र और सिद्धियों का सही इस्तेमाल करने से आप अपने जीवन को और बेहतर बना सकते हैं। बहुत से लोग तंत्र और सिद्धियों का इस्तेमाल सिर्फ अपनी समस्याओं को हल करने के लिए करते हैं। लेकिन इनके इस्तेमाल से आप अपनी आयु और स्वास्थ्य को भी सुधार सकते हैं। तंत्र और सिद्धियों की मदद से आप अपने जीवन में एक नए उलझन से निपट सकते हैं और अपनी स्वास्थ्य को सुधार सकते हैं। तंत्र और सिद्धियों के इस्तेमाल करने से आप अपनी आयु को भी बढ़ा सकते हैं और अपने जीवन की दिशा को निर्देशित कर सकते हैं। इसलिए, तंत्र और सिद्धियों का सही इस्तेमाल करने से आप अपनी आयु, स्वास्थ्य, और जीवन को बेहतर बना सकते हैं। अपनी मुसीबतों को काम कर सकते हैं और अपनी क्षमताओं को बढ़ा  सकते हैं छोटी मोती सीढ़ी सरल साधनाओं से भी बहुत सी सिद्धियां मिलने लगती हैं। 

इस ब्लॉग पोस्ट में, हमने तंत्र और सिद्धियों के सही इस्तेमाल के बारे में जाना। हम जानते हैं कि तंत्र और सिद्धियों का सही इस्तेमाल हमारे आयु और स्वास्थ्य के लिए कितना महत्वपूर्ण है। इनका सही इस्तेमाल हमें आर्थिक समृद्धि, शांति, सम्पूर्णता और स्वस्थ जीवन जीने में मदद करता है। अतः, हमें तंत्र और सिद्धियों का सही इस्तेमाल करना चाहिए। अगर हम तंत्र और सिद्धियों को सही तरीके से इस्तेमाल करते हैं तो हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। इनका सही इस्तेमाल हमें आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ बनाता है। यह हमें आत्मविश्वास देता है कि हम अपने जीवन में कुछ भी हासिल कर सकते हैं। इसलिए, यदि हम तंत्र और सिद्धियों का सही इस्तेमाल करना सीखते हैं तो हम अपने जीवन को सफल बना सकते हैं। सभी मज़हबों में दैनिक पूजापाठ से जुड़ीं बातें तंत्र का ही बस उतना सा मामूली हिस्सा हैं जो आम जनमानस के लिए ज़रूरी समझा गया। बाकी ज्ञान को छुपा लिया गया था। तंत्र की शक्ति और सिद्धियां सुयोग्य पात्र को ही मिल सकें इसका पूरा ध्यान रखा जाता था। कुछ धार्मिक संगत आज के युग में इस तरह की साधना करवाते हैं लेकिन उनके अपने विशेष नियम भी हैं। उन नियमों का पालन आवश्यक है। 

(AIGWC//RK//Karthika//WhatsApp)

Friday, July 29, 2022

क्या तंत्र सिद्धियां भूल जाती हैं या बेअसर होने लगती हैं?

 क्यूं होता है ऐसा और क्या होता है उपाय 


हरिद्वार
29 जुलाई 2022 (तंत्र स्क्रीन डेस्क)::

तंत्र और साधना अलग अलग शब्द होते हुए भी काफी हद तक एक दुसरे से जुड़े हुए हैं। बहुत से संगठन हैं जहाँ साधना का मतलब ही तंत्र साधना है। यह बात अलग है कि साधक को चरणबद्ध तरीके से इसकी जेकरि दी जाती है। सिद्धियां मिलने पर भी उसे शांत और मौन रहना होता है। जो साधक ख़ुशी से ज़्यादा ही उछलने लगते हैं उनकी साधना का विकास भी रुक जाता है। जो साधक नियमित तौर पर गुरु से ली दीक्षा के मुताबिक साधनाकरते रहते हैं उन्हें अछे अनुभव अक्सर होने लगते हैं। उनके रुके हुए काम भी होने लगते हैं। मुख मंडल पर तेज और सिद्धि की चमक हबी दिखाई देने लगती है। आत्मविश्वास में हैरानीजनक वृद्धि होती है। 

दूसरी तरफ बहुत से साधकों को यह समस्या होने लगती है कि उन्हें कई बार कुछ वर्षों के बाद निराशा का सामना होना शुरू हो जाता है।  उन्हें  लगने लगता है कि उनके द्वारा की हुई सिद्धि अब काम नहीं कर रही। उनके तंत्र, मंत्र और हवन इत्यादि निरथर्क से लगने लगते हैं। जिस काम को लेकर सब कुछ किजा जाता है वह होता ही नहीं। जिसका आह्वान करते हैं उसके दर्शन भी नहीं होते। ऐसा सच में होता है। कोई आशंका या ग़लतफहमी नहीं होती। इसके कारण भी होते हैं। 

वास्तव में इसके पीछे कहीं न कहीं साधक अथवा साधिका की स्वयं की ही गलती होती है। जब जब भी अहंकार आने लगता है। सिद्धियों का गलत प्रयोग होने लगता है। निर्दोष मासूम लोगों का नुकसान होने लगता है तब तब सिद्धियों में भी व्यवधान आने लगता है और सिद्धियां भूलने भी लगती हैं। उनमे प्रमुख कारण है शक्ति के प्रयोग का विधि विधान भूल जाना। सिद्ध की हुई सिद्धि के मंत्र को भूल जाना अथवा कभी कभी मंत्र स्मरण का जाप भी याद न रहना। जब जब मंत्र नियमित तौर पर भी नहीं नहीं जपा जाता तब तब भी ऐसी समस्या आती है। तंत्र साधना में नियमित साधना आवश्यक है। 

ऐसी स्थिति तब तब भी विकट बनती है जब जब चरित्र की दुर्बलता आने लगती है। इसके अलावा सबसे प्रबल कारण है चरित्र से भटक जाना।  चरित्र के मार्ग से भटकते ही बुद्धि भर्मित रहने लगती है। उसे सही गलत का ज्ञान भूलने लगता है। ऐसी स्थित में अक्सर होता है कि कुछ अन्य महत्वपूर्ण सूत्र जो गुरु अथवा मार्ग दर्शक के द्वारा सिखाए गए होते हैं साधक उन्हें भी भूल जाता है। 

यह हालत बहुत बार दयनीय भी बन जाती है। बाहर से सब कुछ सही लगता है लेकिन साधक के अंदर की शक्ति खत्म हो चुकी है। ऐसी अवस्था में सिद्धि के होते हुए भी मनुष्य शक्तिहीन हो जाता है। इस स्थिति में जल्द ही संभला न जाए तो भौतिक और शरीरक समस्याएं भी आने लगती हैं।  

साधक का नाम तो अतीत में बन चूका होता है लेकिन वो न ही किसी पारलौकिक समस्या को ठीक कर सकता है न ही किसी के विषय में भूत काल से सम्बंधित घटनाओं को जान सकता है न ही स्वयं को ठीक कर पाता है।  ऐसे में गुरु का समरण ही उसे बचाता है। गुरु ही उसकी अशुद्धियां दूर कर के उसे शुद्ध करता है। साधना को फिर से करने के बाद ही उसे सिद्धियों की वापिसी मिलती है। ऐसा न करने पर उसका नाम पहले की तरह नहीं रहता। 

इस वापिसी के बिना साधक न ही भविष्य में घटित होने वाली सम्भावित घटनाओं का सही विश्लेषण भी नहीं कर सकता है। उसे खतरे का आभास होना भी बंद हो जाता है। उसके मन में निराशा, क्रोध और अन्य उपद्रव उठने लगते हैं। 

 इस लिए आवश्यक है कि सिद्धि प्राप्ति के बाद साधक को सदैव अभ्यास करते रहना चाहिए। उसे हमेशां नैतिक मूल्यों को याद रखना चाहिए। सिद्धि शक्ति के प्रयोगों का और समय समय पर हवन क्रियाओं द्वारा ऊर्जा को बढ़ाते रहना चाहिए। इससे उसकी सिद्धियां बनी रहेंगी , न केवल बनी रहेंगी बल्कि इनमें वृद्धि भी होगी। 

Saturday, December 11, 2021

बीमारी क्यूं कभी अकेली नहीं आती?

ओशो बताते हैं गहरा रहस्य जो हर किसी को पता होना चाहिए 


सोशल मीडिया
: 11 दिसंबर 2021: (तंत्र स्क्रीन डेस्क)::

कभी कभी बड़ी बड़ी बीमारियां भी इंसान को हरा नहीं पाती वह अपने रूटीन में चलता जाता है लेकिन कभी कभी नज़ला ज़ुकाम का छोटा सा अटेक भी मुसीबत खड़ी कर देता है। मैं हैरान था कि कभी कभी छोटी सी बीमारी मजबूरी क्यूं बन जाती है? इस बार मुझे इसका अटेक हुआ  एक पुराने मित्र के अचानक आने से। मुझे लगा कि शायद उसे भी था इस लिए मुझे भी इंफेक्शन हो गयी। इस बीमारी में पढ़नलिख्ना सम्भव ही नहीं था इस लिए सोचता रहा। मसाले वाली चाय पी और इंफेक्शन की गोली भी खाई। तभी ध्यान में आया की आज तो 11 दिसंबर है। ओशो का अवतरण दिवस। फोन पर कुछ तलाश किया तो ओशो की ढेर सारी समग्री मिली। इन्हीं में एक है जिनमें ओशो कहते हैं: बीमारी अकेली नहीं आती।  

ओशो ने जो बताया वह अनमोल है। समझने की गहरी बात है। उसी में है आरोग्य रहने का रहस्य। एक बहुत बड़ा सीक्रेट। ओशो बाकायदा हवाला देते हुए कहते हैं: आधुनिक मनोविज्ञान कहता है  कि जब तक आदमी का मन न बदला जाए, तब तक किसी बीमारी से वस्तुत: छुटकारा नहीं होता।

इसलिए तुमने भी देखा होगा, एक दफे बीमारी के चक्कर में पड़ जाओ तो उससे बचने का रास्ता नहीं दिखता। किसी तरह एक बीमारी से निकल नहीं पाते कि दूसरी घर कर लेती है, 'कि दूसरे से निकल नहीं पाते कि तीसरी घर कर लेती है। ऐसा लगता है, एक कतार है बीमारियों की, तुम एक से निपटे कि दूसरी बीमारी पकड़ती है। जब तक ठीक थे, ठीक थे। इसलिए लोग कहते हैं, बीमारी अकेली नहीं आती। कहावतें कहती हैं, बीमारी अकेली नहीं आती। संग—साथ में और बीमारियां लाती है। दुख अकेला नहीं आता, साथ में भीड़ लाता है।

इसका कारण? इसका कारण न तो दुख है, न बीमारी है। इसका कारण यह है कि मूल को हम छूते नहीं।

समझो कि एक वृक्ष की जड़ों में रोग लग गया है और पत्ते विकृत होकर आने लगे हैं। पूरे खिलते नहीं, पूरे खुलते नहीं, हरियाली खो गयी है। तुम पत्ते काटते रहो, या पत्तों पर मलहम लगाते रहो, या पत्तों पर जल का छिड़काव करते रहो—गुलाब जल का छिड़काव करो, तो भी कुछ बहुत होगा नहीं। जड़ जब तक आमूल स्वस्थ न हो तब तक कुछ भी न होगा।

मनुष्य की जड़ उसके मन में है। मनुष्य शब्द ही मन से बना है। मनुष्य यानी जो मन में रुपा है, मन में गड़ा है। उर्दू का शब्द है, आदमी, वह उतना महत्वपूर्ण नहीं। उसमें बहुत गहरा अर्थ नहीं है। उसमें जो अर्थ भी है, वह छिछला है। आदम का अर्थ होता है, मिट्टी। 'जो मिट्टी से बना है, उसको कहते आदमी। क्योंकि भगवान ने पहले आदमी को मिट्टी से बनाया और फिर उसमें श्वास फूंक दी, इसलिए उसका नाम आदम। फिर आदम के जो बच्चे हुए, उनका नामे आदमी। आदमी मिट्टी से बना है, मतलब आदमी देह है।

हमारी पकड़ इससे गहरी है। हम कहते है, मनुष्य। अंग्रेजी का मैन भी संस्कृत के मन का ही रूपांतर है। वह भी महत्वपूर्ण है। हम कहते हैं, मनुष्य। हम कहते हैं, मिट्टी नहीं है आदमी, आदमी है मन, आदमी है विचार, आदमी है उसका मनोविज्ञान। जैसे ईसाइयत, इस्लाम और यहूदी आदम को पहला आदमी मानते हैं, हम नहीं मानते। क्योंकि आदम होना तो आदमी का ऊपरी वेश है, वह असली बात नहीं है। असली बात तो भीतर छिपा हुआ सूक्ष्म रूप है।

मनुष्य का अर्थ ही होता है, जिसकी जड़ें मन में गड़ी हैं। लेकिन आधुनिक खोजें इस सत्य के करीब आ रही हैं। आधुनिक खोजें इस बात को स्वीकार करने लगी हैं कि आदमी शरीर पर समाप्त नहीं है। न तो शरीर पर शुरू होता है, न शरीर पर समाप्त होता है। शरीर तो घर है जिसमें कोई बसा है। फिर हम यह भी नहीं कहते कि आदमी मन पर समाप्त हो जाता है, हम कहते हैं, मन में गड़ा है। है तो मन से भी पार। इसलिए आदमी है तो आत्मा।

अब इन तीन शब्दों को ठीक से लेना—आत्मा, मन, देह। मन दोनों के बीच में है। मन को तुम शरीर से जोड़ दो तो संसारी हो जाते हो और मन को तुम आत्मा से जोड़ दो तो संन्यासी हो जाते हो। मन के जोड़ का सारा खेल है। आत्मा भी तुम्हारे भीतर है, शरीर भी तुम्हारे पास है, बीच में डोलता हुआ मन है। इसलिए मन सदा डोलता है। डांवाडोल रहता है। मध्य में लहरें लेता रहता है। अगर तुम्हारा मन शरीर की छाया होकर चलने लगे तो तुम संसारी, अगर तुम्हारा मन आत्मा की छाया होकर चलने लगे, तुम संन्यासी। कुछ और फर्क नहीं है। मन अगर अपने से नीचे की बात मानने लगे तो संसारी, मन अगर अपने ऊपर देखने लगे तो संन्यासी।

संन्यास की धारणा इस देश में पैदा हुई, क्योंकि हमें यह बात समझ में आ गयी कि मन दो ढंग से काम कर सकता है। मन तटस्थ है। मन की अपनी कोई धारणा नहीं है। मन यह नहीं कहता, ऐसा करो। तुम पर निर्भर है। तुम चाहो तो मन को शरीर के पीछे लगा दो, तो वह शरीर की गुलामी करता रहेगा। मन तो बड़ा अदभुत गुलाम है। उस जैसा आज्ञाकारी कोई भी नहीं। तुम उसे आत्मा की सेवा में लगा दो, वह आत्मा की सेवा में लग जाएगा। तुम उसे लोभ में लगा दो, वह लोभ बन जाएगा। तुम उसे करुणा में लगा दो, वह करुणा बन जाएगा।

सारे धर्म की कला इतनी ही है कि हम मन को नीचे जाने से हटाकर ऊपर जाने में कैसे लगा दें। और खयाल रखना, जो सीढ़ियां नीचे ले जाती हैं वही सीढ़ियां ऊपर ले जाती हैं। सीढ़ियां तो वही हैं। ऐसा भी हो सकता है कि दो आदमी बिलकुल एक जैसे हों, एक जगह हों, और फिर भी एक संन्यासी हो और एक संसारी हो।

ओशो.

एस धम्मों सनंतनो

प्रवचन:: 75

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Monday, November 29, 2021

कोरोना अंतराल के बाद भैरव बाबा को चढ़ी 56 प्रकार की शराब

 जानिए इसके पीछे का रहस्य--कहाँ जाती है अर्पित की गई शराब 

उज्जैन में है विश्व प्रसिद्ध काल भैरव मंदिर जहां दो दिवसीय भैरव अष्टमी पर्व की परम्परिक शुरुआत हुई।  कोरोना की वजह से लम्बे अंतराल के बाद रात 9 बजे की विशेष आरती भी बहुत ही आस्था और सम्मान से भव्य माहौल में हुई। आरती के बाद देर रात 12 बजे भगवान काल भैरव का विशेष पूजन हुआ। इस पूजन का विशेष महत्व है और इसमें किस्मत वाले ही शामिल हो पते हैं।  इसके बाद भैरव बाबा को 56 प्रकार की शराब का भोग भी लगाया गया.इसके साथ ही फिर आज 111 तरह के पकवानों का भंडारा लगाने की तैयारियां शुरू हुईं। 

बता दें कि मन्दिर को आकर्षक विद्युत रोशनी, फूलों व बलून से सजाया गया है।  इसके बाद 28 नवंबर शाम 4 बजे बाबा भैरव नगर भ्रमण पर भी निकले। इसमें भेरवगढ़ जेल का प्रशासनिक अमला बाबा को सलामी भी देता है। गौरतलब है कि कल भैरव भगवान शिव के सेनापति हैं। लोग अपने दुश्मनों से भय मुक्त होने के लिए भी इन्हीं की पूजा करते हैं। 

धर्म. पूजन, अधयात्म और तंत्र के क्षेत्र में शिव के रूप में ही गिने जाते हैं बाबा भैरव और तंत्र में तो इनकी पूजा खास महत्व रखती है। औघड़ भी इन्हीं से आशीर्वाद पाते हैं। कोर्ट कचहरी और मुकदमों में विजय के लिए किया जाता है इन्हीं का ध्यान। कदम कदम पर जब जंग की स्थितयां बनती हैं और सब कुछ अपने विपरीत होने लगता है तो भैरव बाबा उस नाज़ुक समय में भी रास्ता दिखाते हैं।  

जब कोई रास्ता नहीं सूझता उस समय भैरव बाबा का नाम ही तसल्ली देने लगता है। भैरव अर्थात भय से रक्षा करने वाला, इन्हें शिव का ही रूप माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार काल भैरव भगवान शिव का ही साहसिक और युवा रूप हैं।  जिन्हें रुद्रावतार भी कहते हैं -जो शत्रुओं और संकट से मुक्ति दिलाते हैं। उनकी कृपा हो तो कोर्ट-कचहरी के चक्करों से जल्दी छुटकारा मिल जाता है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार हर महीने कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी व्रत रखा जाता है।  इस दिन कालभैरव की पूजा की जाती है। उज्जैन में विश्व का एक मात्र ऐसा मंदिर है।  जहां पर कालभैरव भगवान पर मदिरा का चढ़ावा चढ़ाया जाता है। यूं कई अन्य जगहों पर भी कुछ मंदिर हैं जहाँ शराब चढ़ाई जाती है। 

जहां तक उज्जैन की बात है यहाँ लोग दूर दूर से आते हैं नतमस्तक होने के लिए। महाकाल की नगरी होने से भगवान काल भैरव को उज्जैन नगर का सेनापति भी कहा जाता है। कालभैरव के शत्रु नाश मनोकामना को लेकर कहा जाता है कि यहां मराठा काल में महादजी शिन्दे (सिंधिया)  ने युद्ध में विजय के लिए भगवान को अपनी पगड़ी अर्पित की थी। इसी तरह पानीपत के युद्ध में मराठों की पराजय के बाद तत्कालीन शासक महादजी शिन्दे (सिंधिया) ने राज्य की पुर्नस्थापना के लिए भगवान के सामने पगड़ी रख दी थी। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि युद्ध में विजयी होने के बाद वे मंदिर का जीर्णोद्धार करेंगे। कालभैरव की कृपा से महादजी शिन्दे (सिंधिया) युद्धों में लगातार विजय हासिल करते चले गए। इसके बाद उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। तब से मराठा सरदारों की पगड़ी भगवान कालभैरव के शीश पर पहनाई जाती है! यह आस्था अब परम्परा भी बन चुकी है। ज़िंदगी की परेशानियां जब सभी कोशिशों को नाकाम करती हुईं हराने लगती हैं तो उस समय बेहद मुश्किल होता है खुद को आत्महत्या से बचा पाना। जीत या मौत दो ही रस्ते बाकी बचते हैं तो भैरव बाबा संघर्ष की प्रेरणा देते हैं। इस जंग में अग्रसर होते ही भक्तों को विजय मिलनी शुरू हो जाती है। बहुत ही बेबाकी और दलेरी मिलती है भैरव बाबा की कृपा हो जाए तो। बहिराव स्वयं भी तो ऐसे ही हैं।  

स्वंय ब्रह्मा की गलती पर जब भैरव बाबा को क्रोध आया तब आपने अपने बाँए हाथ के नाखून से उनका पाँचवा सिर काट कर अलग कर दिया। श्री शिव प्रिय काशी और उज्जैन नगरी के कोतवाल, बाबा महाकाल जी के सेनापति , सभी देवी के शक्तिपीठों के साथ रक्षक रुप में विराजमान, उन ऐसे प्यारे भगवान श्री देवाधिदेव महादेव जी के प्रिय मुख्य "भैरव" अवतार के प्राकट्योत्सव  की सभी भक्तों को हार्दिक मंगल बधाई भगवान् भैरव सभी भक्तों के भय का नाश करें। काल भैरव की आरती से हर रोज़ नई शक्ति मिलती है। इस आरती को पढ़ने के लिए आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं। 

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Friday, October 29, 2021

हमारे जीवन का मूल स्रोत हैं भगवान

भगवान से टूट कर हम कहीं के नहीं रहते 

सोशल मीडिया: 29 अक्टूबर 2021 (इंटरनेट//तंत्र स्क्रीन डेस्क)

बहुत से लोगों के चेहरों पर देखते ही लगता है जैसे वे बहुत मक्कार हैं, बहुत ही शैतान हैं, बहुत ही चालक हैं, बहुत ही झूठे हैं, बहुत ही फरेबी हैं। दूसरी तरफ बहुत से लोग ऐसे भी मिलते हैं जिनके चेहरों पर सदा बहार मुस्कान सी छाई रहती है। उनके चेहरे पर एक दिव्य सी चमक होती है। उनके चेहरेव से नूर बरस रहा होता है। उनकी आंखें  अपनत्व का संदेश दे रही होती हैं।  चेहरे पर इस तरह के प्रभाव अंतर्मन से ही आते हैं। सच कहा जाता है ज्ञान भरे मुहावरों में भी कि अनुभवी  लोग चेहरे से ही सब कुछ देख सकते हैं।  मन का दर्पण सब कुछ चेहरे पर ही दिखा देता है। अभिनय करने वाले भी इसका प्रभाव ज़्यादा देर तक रोक नहीं पाते। आखिर क़ज़ा रहस्य है चेहरे की चमक दमक ह्री सकारत्मकता काऔर शैतानी भरी नकरत्मक्ता का। जीवन सार के अंतर्गत एनर्जी गुरु के तौर पर जाने जाते पं.रमेश चन्द शास्त्री बताते हैं बहुत भी गहरा रहस्य।

पं. रमेश चंद शास्त्री
एक दिलचस्प कहानी भी सुनाते हैं पंडित जी। आप भी पढ़िए इसका संक्षिप्त सा रूप। जब भगवान ने मछली का निर्माण करना चाहा, तो उसके जीवन के लिये उनको समुद्र से वार्ता करनी पड़ी। जब भगवान ने पेड़ों का निर्माण करना चाहा, तो उन्होंने पृथ्वी से बात की। लेकिन जब भगवान ने मनुष्य को बनाना चाहा, तो उन्होंने खुद से ही विचार-विमर्श किया। तब भगवान ने कहा- मुझे अपने आकार और समानता वाला मनुष्य का निर्माण करना है और फिर उन्होंने अपने समान मनुष्य को बनाया।

अब यह बात ध्यान देने योग्य है, यदि हम एक मछली को पानी से बाहर निकालते हैं तो‌ वो मर जाएगी, और जब हम जमीन से एक पेड़ उखाड़ते हैं तो वो भी मर जाएगा। इसी तरह, जब मनुष्य भगवान से अलग हो जाता है, तो वो भी मर जाता है।भगवान हमारा एकमात्र सहारा है। हम उनकी सेवा और शरणागति के लिए बनाए गए हैं। हमें हमेशा उनके साथ जुड़े रहना चाहिए, क्योंकि केवल उनकी कृपा के कारण ही हम जीवित रह सकते हैं।

अतः हम भगवान से सदैव जुड़े रहें। हम देख सकते हैं कि मछली के बिना पानी फिर भी पानी है, लेकिन पानी के बिना मछली कुछ भी नहीं है। पेड़ के बिना प्रथ्वी फिर भी प्रथ्वी ही है, लेकिन प्रथ्वी के बगैर पेड़ कुछ भी नहीं है।‌ इसी तरह, मनुष्य के बिना भगवान, भगवान ही हैं लेकिन बिना भगवान के मनुष्य कुछ भी नहीं है। इस युग में भगवान से जुड़ने का एक सरल उपाय शास्त्रों में वर्णन है - हरिनाम सुमिरन।

राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट

अंत समय पछताएगा जब प्राण जाएंगे छूट

पं. रमेश चंद शास्त्री जहां संजीवनी एस्ट्रो हीलिंग पॉइंट भी चलाते हैं वहीँ माईंड मेजिक नाम से रेगुलर पेज कलम भी लिखते हैं। उन्हें मेडिकल जानकारी भी है एक ही बार-एक ही खुराक-से तंदरुस्त करने की कला में भी वह अभियस्त हैं।