तंत्र की हकीकत--प्रमाणिकता और इतिहास....!
लुधियाना: 13 जुलाई 2024: (के. के.सिंह//तंत्र स्क्रीन डेस्क)
अगर हम तंत्र की हकीकत--प्रमाणिकता और इतिहास पर चर्चा करें तो बहुत सी बातें इसके हक़ में भी मिलेंगी और विरोध में भी। जो लोग इसके हक़ में हैं वो बहुत सी बातें बताएंगे जो सबूत जैसी ही लगेंगी। इनमें पढ़े लिखे लोग भी अक्सर शामिल होते हैं।
जो लोग तंत्र के हक़ में नहीं हैं वे भी बंटे हुए हैं। उनमें से अधिकतर लोग ऐसे हैं जो दबे दबे से स्वर में इसका विरोध करते हैं खुल कर नहीं। उनके स्वर में भय मिश्रित सुर को भी महसूस किया जा सकता है। उन्को खुद चाहे तंत्र प्रयोग का कोई भी अच्छा या बुरा अनुभव न रहा हो लेकिन किसे से सुना सुनाया कोई भयानक अनुभव ज़रूर याद रहता है और उसका भय उनकी आंखों में महसूस कीजै जा सकता है। कई लोग ऐसे में घबरा कर ऐसा भी कहते हैं हमें इस पर कुछ नहीं कहना। आपको पता नहीं यह चीज़ें बहुत भरी होती हैं।
तंत्र की उत्पत्ति और इतिहास
तंत्र एक प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक परंपरा है, जिसकी जड़ें वैदिक काल में पाई जाती हैं। इसका उल्लेख वेदों, उपनिषदों, पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। तंत्र साधना का विकास मुख्यतः गुप्त काल (4वीं से 6वीं सदी) में हुआ, जब इसे बौद्ध, जैन और हिंदू परंपराओं में अपनाया गया। बहुत से समुदायों और संगठनों ने इसे धीरे धीरे पूरी तरह से अपना लिया। अब अलग अलग नामों से तंत्र हर क्षेत्र और सम्प्रदाय में मौजूद है।
केवल इतना ही नहीं छोटे छोटे डेरों और मज़ारों पर भी अक्सर तंत्र के क्रियाकलाप किए जाते हैं। लोग झाड़ा करवाने वहां जाते हैं और उसके बाद वे पूरी तरह से ठीक होने का दावा भी करते हैं। ीा मामले में क्या क्या संभव है इसकी चर्चा भी हम अलग से किसी पोस्ट में करेंगे ही।
तंत्र के सिद्धांत गहरी बातें करते हैं
तंत्र का मुख्य उद्देश्य आत्मा और परमात्मा के मिलन को प्राप्त करना है। यह यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाता है और मानता है कि संसार को त्यागने के बजाय, उसकी वास्तविकता को समझकर और उसमें रहकर आत्मा की उन्नति की जा सकती है। तंत्र साधना में मंत्र, यंत्र, और विभिन्न प्रकार की ध्यान विधियों का प्रयोग होता है। इन विधियों को समझना और करना सहज नहीं होता लेकिन फिर भी बहुत से लोग ऐसा करते हैं।
तंत्र और योग का संबंध
शरीर शुद्ध और निरोग न हो तो तंत्र की बात तो दूर साधारण मेडिटेशन भी संभव नहीं रहती। शरीर की निरोगता और उसका बलवान होना आवश्यक है। शरीर की शक्ति अर्जित करने के बाद ही मन को बलवान बनाना सिखाया जाता है। इसके बाद आत्मा की शक्ति को जगाने और उसे बढाने की विधियां आती हैं। वास्तव में तंत्र और योग का गहरा संबंध है। तंत्र साधना में ध्यान, प्राणायाम, मुद्रा और बंध जैसे योग के अंगों का उपयोग किया जाता है। तंत्र साधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कुंडलिनी योग है, जिसमें शरीर में स्थित ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) को जागृत किया जाता है। जो साधक इन रहस्यों को समझ जाता है उसके लिए तंत्र साधना के मर्म तक पहुंचना भी संभव हो जाता है।
तंत्र साहित्य के क्षेत्र
यूं तो तंत्र में बहुत सा साहित्य शामिल है जिसे गिना भी नहीं जा सकता। किसी बड़े पुस्तकालय या पुस्तक बिक्री केंद्र में जाएं तो तंत्र पर बहुत सी पुस्तकें और ग्रंथ वहां देखने को मिलेंगे। हर पुस्तक का कवर लुभावना होगा। तस्वीर रहसयमय और नाम अपने आप में बहुत कुछ समेटे होगा। लेकिन इसमें सच्चे तंत्र साहित्य को कोई सच्चा साधक या गंभीर पाठक ही समझ पाता है।
तंत्र साहित्य में विभिन्न ग्रंथ शामिल हैं, जैसे कि शैव आगम। भगवान शिव के भक्तों में शैव आगम से सबंधित ये ग्रंथ बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। साधक भगवान शिव को सर्वोच्च देवता मानते हैं। ओशो ने भी तंत्र की जिन 112 विधियों का उल्लेख किया है वह बहुत अर्थपूर्ण है। तंत्र पर ओशो के प्रवचनों पर आधारित बहुत सी किताबें भी मार्कीट में हैं। ख़ास बात यह है कि इन 112 विधियों में से कोई न कोई ऐसी विधि सभी को मिल जाती है जो उसकी शरीरक सरंचना, मन की अवस्था, समय की अनुकूलिता और हर मामले में रास आ ही जाती है।
इसी तरह शाक्त आगम का क्षेत्र भी बहुत अलग और विशाल है। इस क्षेत्र से जुड़े ग्रंथ देवी की पूजा पर आधारित होते हैं। इन ग्रंथों में तंत्र से सबंधित विधियां भी बहुत गहन होती हैं। इन विधियों के लिए अग्रसर होना हो तो साधक को बहुत तैयारी भी करनी पड़ती है। इन विधियों में देवी के रूप को बहुत विधि से ध्याना होता है। देवी को बुलाने और उसके आने पर जो जो करना होता है उसके पूरे नियम भी होते हैं। इसमें क्यूंकि मुख्यता देवी को मां के रूप में पूजा जाता है तो साधक के मन में यह बात पूरी मज़बूती से बनी रहती है कि मैं मां की संतान हूं इसलिए मां मुझे मेरी हर बुराई और पाप के साथ स्वीकार करेगी और मुझे क्षमा करेगी। इस भावना से साधक की आत्मिक प्रगति तेज़ी से होने लगती है। उसका शरीर भी शुद्ध और बलवान होने लगता है और मन भी मज़बूत बन जाता है।
तंत्र साधना से जुड़े साहित्य और ग्रंथों में वैष्णव आगम ग्रंथ महत्वपूर्ण हैं। ये विष्णु और उनके अवतारों की पूजा पर केंद्रित हैं। वर्ष 1972 में आई फिल्म हरी दर्शन एक तरह से इन्हीं ग्रंथों पर आधारित थी। निर्देशक थे चंद्रकांत और मुख्य कलाकारों में थे दारा सिंह। फिल्म की कहानी प्रहलाद भक्त पर आधारित थी और गीत संगीत भी बेहद जादू भरा था। बालक प्रह्लाद की भूमिका निभाई थी सत्यजीत पुरी ने।
आखिर में यह उल्लेख आवश्यक है कि तंत्र का आधुनिक संदर्भ बहुत प्रदूषित जैसा हो गया है। आजकल तंत्र को अक्सर गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, जिससे इसकी वास्तविकता और महत्व धुंधला हो जाता है। तंत्र की सच्ची साधना में नैतिकता, स्व-अनुशासन और गुरु-शिष्य परंपरा का विशेष महत्व है। इसलिए इस तरफ भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है।
कुल मिलकर तंत्र एक समृद्ध और जटिल परंपरा है, जिसका इतिहास और प्रामाणिकता गहन अध्ययन और अनुभव से ही समझा जा सकता है। यह केवल एक साधना पद्धति नहीं है, बल्कि जीवन को देखने और समझने का एक व्यापक दृष्टिकोण है, जो व्यक्ति के मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है। इसकी सच्ची खोज केवल किताबों से कुछ वीडियो चैनल देख कर नहीं हो सकती। अंतर्मन में तंत्र के लिए सवयं की प्यास जागने पर ही रास्ते मिलते हैं और गुरु भी।
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