Wednesday 11th November 2025 Regarding Kaal Bhairav Jayanti 2025 Details Kaal Bhairav//Tantra Screen
चंडीगढ़:11 नवंबर 2025: (मीडिया लिंक रविंद्र/ /तंत्र स्क्रीन-अध्यात्म डेस्क)::
सिसवा डैम के नज़दीक स्थित भगवान काल भैरव मंदिर को बिलकुल ही निकट महसूस करते हुए थोड़ा सा ही सोचा तो कई अनुभव होने लगे। काल भैरव से मेरा स्नेह और इनमें मेरी आस्था बहुत पुरानी है। इसकी शुरुआत का सही समय भूल गया है लेकिन मैं अभी 9 बरस का भी नहीं हुआ था।
काठमांडू नेपाल में स्थित इस प्रतिमा की तस्स्वीर क्लिक की रुपेशाग्राफी ने
उन दिनों के ज्योतिषी लोग यूट्यूब के साथ सुसज्जित नहीं हुआ करते थे। ऐसा कुछ उन दिनों था भी नहीं। बड़ा सा कुरता पहना होता उसके साथ पायजामा कभी कभार ही होता आम तौर पर धोती जैसी पौशाक होती। । कंधे पर तीन झोले लटकते होते। एक में वह सामान डालते जों जयोतिष लगवाने वाले उपाय के लिए ला कर देते। सरसों के तेल का बर्तन भी होता। एक झोले में उपाय के रत्न इत्यादि भी होते। हाथ में जंत्रियां हुआ करती थीं और हाथों की उँगलियों में पांसे जैसी चौकौर से कुछ डिज़ाइन जो एक माला जैसी चीज़ से लटके होते। हर सवाल पर वह इन्हीं चौकौर खानों को नीची बिछाई छड्ड पर फेंकते। फिर कई बार जंत्री भी खंगालते। कई बार हाथों की लकीरें भी गहराई से देखते। यही थे उस दौर के ज्योतिषी। हर गली में चक्क्र लगा कर आवाज़ भी देते कि कौन सा दिन त्यौहार है ?
बस यही याद करते करते विचार आया कि कल अर्थात बुधवार को 12 नवंबर 2025 है। लगा निश्चय ही कल का यह दिन त्यौहार भी ख़ास ही होगा क्यूंकि कल को काल भैरव जयंती है। इसका पक्का होने पर काल भैरव जी का समरण भी हुआ। बहुत छोटी सी उम्र में हुआ था परिचय। भगवान शिव के इस अवतार का पता चलते ही मुझे लगा जैसे पाने किसी पारिवारिक पुरखे से बात हो गई ही। भगवान् से शिव के साथ इस अनन्य प्रेम की कहानी भी अलग है जिसकी चर्चा फिर कभी सही।
वास्तव में मुख्य हिन्दू दिन त्योहारों में कालभैरव जयंती का अपना ही महत्व है। इस त्यौहार को जिसे कालाष्टमी भी कहते हैं) है। वास्तव में यह दिन भगवान शिव के रौद्र रूप, भगवान कालभैरव के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस रौद्र रूप को देखने , दिखने और अपनाने की ज़रूरत ज़िन्दगी में कई बार महसूस होती है। भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और भय, पाप व संकटों से मुक्ति पाने के लिए उनकी विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इस रूप के स्मरण मात्र से ही एक शक्ति का अहसास होता है। एक आत्म विश्वास जागने लगता है।
अब जबकि 12 नवंबर 2025 को कालभैरव जयंती है तो थोड़ी सी आस्था होते ही आप महसूस कर सकते हैं कि तन मन में बहुत से बदलाव आते हैं। बहुत ही अदभुत अहसास-शक्ति के, क्षमता के, आत्म विश्वास के विजय के और भगवान काल बी भैरव के दर्शनों के। साथ ही इस तरह के योग भी बनने लगते हैं। भगवान काल भैरव के स्वरूप को ध्यान से देखने का मन भी होता है। आसपास स्थित भगवान् काल भैरव मंदिर के दर्शनों की अभिलाषा भी होने लगती है।
काल भैरव जयंती पर यह उल्लेख भी ज़रूरी है कि काशी के कोतवाल, जिनसे काल भी डरता है वह बहुत बड़ी शक्ति हैं। जानिए क्यों कहलाते हैं कालभैरव 'काशी के कोतवाल' वैसे यह कहानी भी जल्द ही अलग से राख्नेगे आप के सामने।
गौरतलब यह भी कि हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान कालभैरव की जयंती भक्ति और श्रद्धा से मनाई जाती है।
वैसे तो मोहाली-चंडीगढ़ क्षेत्र में कई भैरव मंदिर हैं, लेकिन श्री काल भैरव का सबसे प्रसिद्ध मंदिर सिसवां डैम, नया चंडीगढ़ के पास स्थित है।
श्री भैरव जाति मंदिर की भी बहुत गहरी मान्यता है यह मंदिर चंडीगढ़-बद्दी रोड पर स्थित है। यह स्थान प्रकृति से घिरा हुआ है और सिसवां डैम के पास होने के कारण बहुत शांत और सुंदर है। यह विशेष रूप से काल भैरव की पूजा के लिए जाना जाता है। तंत्र साधना करने वाले भी अक्सर यहाँ हाज़री लगवाते हैं।
अन्य भैरव मंदिर भी आसपास हैं। इसी क्षेत्र में कई अन्य भैरव मंदिर भी हैं। भैरव मंदिर, मनसा देवी परिसर: यह मंदिर पंचकूला में मनसा देवी परिसर के भीतर स्थित है। श्री भैरव मंदिर, ढकौली: यह मंदिर जीरकपुर में स्थित है।
भैरव जाति मंदिर, सिसवां, न्यू चंडीगढ़ सचमुच चंडीगढ़ क्षेत्र में एक अवश्य देखने योग्य स्थान है फिर भी दर्शन तो किस्मत से ही होते हैं।
कुछ लोग नॉनवेज और शराब के सेवन को इस मौके पर अच्छा समझते हैं। लेकिन है यह व्यक्तिगत मान्यता। अंडा मांसाहार और शराब का सेवन आपकी व्यक्तिगत मान्यताओं और परंपराओं पर निर्भर करता है, लेकिन सामान्य धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धार्मिक त्योहारों, विशेषकर कालभैरव जयंती जैसे शुभ और पवित्र दिनों पर, अधिकांश लोग अंडा, मांस और शराब के सेवन से परहेज करते हैं।
कुछ लोग इसे लेकर धार्मिक कारण बताते हैं और इनकी पालना सही समझते हैं। यह बात भी सभी जानते समझते हैं कि हिन्दू धर्म में त्योहारों और उपवास के दिनों को सात्विक (शुद्ध) रहने और मन व शरीर को पवित्र रखने का समय माना जाता है। तामसिक (मांस, शराब, आदि) भोजन का सेवन इस दिन वर्जित माना जाता है, क्योंकि यह पूजा-पाठ के माहौल के विपरीत होता है। पूजा पता का माहौल सात्विक रखा जाना ज़रूरी भी है। इसलिए तामसिक सोच और खानपान से परहेज़ ही रखना उचित होता है।
इसके चलते एक सच और भी है कि क्षेत्रीय और व्यक्तिगत प्रथाएं कुछ विशिष्ट तांत्रिक या क्षेत्रीय प्रथाओं में, भैरव पूजा के हिस्से के रूप में कुछ विशेष प्रकार के प्रसाद (जिन्हें महाप्रसाद कहते हैं) का उपयोग किया जाता है, लेकिन यह आम जनता के बीच प्रचलित नहीं है। सभी मंदिरों और सभी स्थानों पर यह होता भी नहीं। इसलिए मान कर चलिए कि यदि आप धार्मिक मान्यताओं का पालन करते हुए कालभैरव जयंती मना रहे हैं, तो इन चीजों का सेवन करने से बचना ही सबसे अच्छा माना जाता है।
फिर भी कुछ हद तक यह बात सच है कि कुछ लोग भैरव मंदिरों में शराब और कुछ मामलों में मांसाहारी प्रसाद भी चढ़ाते हैं। यह प्रथा मुख्य रूप से तांत्रिक परंपराओं और कुछ विशिष्ट मान्यताओं से जुड़ी हुई है, जिसके पीछे कई कारण बताए जाते हैं।
वैसे इस मुद्दे पर बात करते हुए शराब और नॉन-वेज प्रसाद चढ़ाने के जो कारण उनका भी कुछ न कुछ आधार तो होता ही है। काम ही सही पर इसका प्रचलन तो है ही।
इस सब के साथ ही तांत्रिक परंपरा भी प्रचल्लित है। भैरव को तंत्र विद्या का देवता माना जाता है। तांत्रिक साधना में तामसिक चीजों का महत्व होता है, और शराब को भी इसी का हिस्सा माना जाता है। साधक और सेवक तरह केसवन से मिलने वाली ऊर्जा को अपनी साधना में उन्नति के लिए इस्तेमाल करते हैं।
शायद सभी लोग न जानते हों लेकिन शिव के इस स्वरूप को तामसिक देवता मान कर भी पूजन किया जाता है। काल भैरव को शिव का एक उग्र या तामसिक रूप माना जाता है। भक्तों का मानना है कि ऐसी चीजें अर्पित करने से वह प्रसन्न होते हैं। इस लिए इस प्रसन्नता को हासिल करने के लिए ऐसी चीज़ें चढ़ाई भी जटरी हैं , इनका सेवन भी होता है इसका प्रसाद भी वितरित होता है।
मनोवैज्ञानिक कारण: यह सब एक और रहस्य के चलते भी किया जाता है। दुर्गुणों का समर्पण इस देवता के सामने बहुत श्रद्धा से किया जाता है। एक मान्यता यह भी है कि शराब जैसी बुरी आदतों को भगवान को समर्पित करके भक्त अपने अंदर के दुर्गुणों से मुक्ति पाने की प्रार्थना करते हैं। यह आत्म-नियंत्रण और सांसारिक मोह-माया से मुक्त होने का प्रतीक है। ऐसी साधना से धीरे धीरे ऐसे व्यसन छूट जाते हैं।
बहुत पुरानी क्षेत्रीय और विशिष्ट परंपराएं हैं यह सब। भारत के कुछ विशेष मंदिरों में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। उदाहरण के लिए, उज्जैन के काल भैरव मंदिर में शराब चढ़ाने की प्रथा बहुत प्रसिद्ध है, जहां भक्त भगवान को शराब चढ़ाते हैं और उसे प्रसाद के रूप में भी ग्रहण करते हैं। ऐसा करके यदि आप ऐसे दुर्गुण छोड़ने में कामयाब हो जाते है तो यह सौदा भी महंगा नहीं है।
मोहाली और चंडीगढ़ क्षेत्र में, श्री भैरव जाति मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। यह मंदिर सिसवां डैम के पास नया चंडीगढ़ में स्थित है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट आम तौर पर न मात्र जैसी ही है। अपने व्यक्तिगत या कराये के वाहन से ही पहुंचा जा सकता है। यह एक ऐसा मंदिर है जहाँ कुछ भक्त शराब का प्रसाद चढ़ाते हैं। इस आस्था को वहां पांच कर देखा भी जा सकता है और महसूस भी किया जा सकता है। यह मंदिर अपनी अनूठी परंपरा के लिए जाना जाता है, जहाँ भक्तों का मानना है कि भगवान काल भैरव को शराब चढ़ाने से उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि:यह परंपरा मुख्य रूप से कुछ विशेष मंदिरों की है, न कि क्षेत्र के सभी भैरव मंदिरों की। साथ ही भैरव बाबा के सात्विक रूप भी तो हैं आप चाहें तो उस सवरूप की पूजा अर्चना कर सकते हैं। अन्य मंदिरों में, जैसे कि मनसा देवी परिसर के मंदिर में, आमतौर पर सात्विक प्रसाद ही चढ़ाया जाता है। कुल मिला कर मन की आस्था को पहल देना सब से ज़रूरी है।
इसे विचार में रखना आवश्यक है कि मांसाहारी (नॉन-वेज) प्रसाद चढ़ाने के बारे में यह प्रथा भारत के कुछ बहुत ही विशिष्ट तांत्रिक मंदिरों तक ही सीमित है (जैसे कि कुछ काली मंदिर, जहां बकरी की बलि दी जाती है)। वास्तव में ऐसी प्रथाएं भी किसी गहरे रहसयमय कारणों से शुरू हुई होती हैं। कथाओं के आयोजन में इनकी चर्चा भो होती है। ऐसी किसी प्रथा में कोई स्वयं मांस मदिरा का सेवन करना छाए तो अलग बात है। .

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