Tuesday, April 16, 2024

तंत्र की हकीकत//प्रमाणिकता और इतिहास

Monday 15th April 2024 at 09:45 AM 

तंत्र का सच तंत्र में आ कर ही समझना सही होगा


हरिद्वार
: 16 अप्रैल 2024: (तंत्र स्क्रीन डेस्क)::

तंत्र की हकीकत कैसी है, कितनी है यह लगातार शोध का विषय रहा है। इसकी प्रमाणिकता को लेकर भी दलीलें मिलती हैं और इसके इतिहास  भी। तंत्र की कथाएं और गाथाएं सदियों पुरानी हैं। तंत्र की उत्पत्ति और इतिहास को लेकर बहुत कुछ कहा, सुना और लिखा जा चुका है। 

लेकन यह एक सत्य है कि तंत्र एक प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक परंपरा है, जिसकी जड़ें वैदिक काल में पाई जाती हैं। इसका उल्लेख वेदों, उपनिषदों, पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। तंत्र साधना का विकास मुख्यतः गुप्त काल (4वीं से 6वीं सदी) में हुआ, जब इसे बौद्ध, जैन और हिंदू परंपराओं में अपनाया गया।बौद्ध, जैन और हिन्दू परंपराओं में तंत्र की बहुत जहां चर्चा मिलती है। इस संबंध में मंदिर जैसी विशाल इमारतें भी मिलती हैं। इन्हीं में एक है 64  जो कई अलग अलग जगहों पर बना हुआ है। इसके महत्व और मकसद को लेकर भी बहुत कुछ कहा गया है। तंत्र में आस्था रखने वाले इसे तंत्र की यूनिवर्सिटी कहते भी हैं और मानते भी हैं। कहा जाता है कि संसद के पुराने भवन का डिज़ाईन और आकार इसी मंदिर से प्रेरणा पा कर रचा गया था।  

अब तंत्र के सिद्धांत की बात करें तो वह बहुत उंच और पवित्र है अब यह बात अलग अलग है बहुत से लोगों ने इसे अपने अपने ढंग से लेकर स्वार्थ सिद्धि करनी शुरू कर दी। वास्तव में तंत्र का मुख्य उद्देश्य आत्मा और परमात्मा के मिलन को प्राप्त करना है। यह यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाता है और मानता है कि संसार को त्यागने के बजाय, उसकी वास्तविकता को समझकर और उसमें रहकर आत्मा की उन्नति की जा सकती है। तंत्र साधना में मंत्र, यंत्र, और विभिन्न प्रकार की ध्यान विधियों का प्रयोग होता है। सच्चा तांत्रिक हर मिशन में कामयाब होता है बेशक वह कितना ही कठिन मकसद क्यूं न हो। 

तंत्र और योग का भी बहुत गहरा संबंध है। योग साधना से शरीर की मुश्किलें और व्याधियां दूर होती हैं जिससे तंत्र में सहायता मिलती है।  तंत्र का मिशन जल्दी कामयाब होता है। सिद्धि जल्दी मिलती है। समाधी भी जल्दी लगती है और भगवान से गहन ध्यान जल्दी जुड़ता है। भूख, प्यास, गर्मी सर्दी का अहसास और दुःख-सुख की भावना सब नियंत्रित हो जाते हैं। कई कारणों से तंत्र और योग का गहरा संबंध है। तंत्र साधना में ध्यान, प्राणायाम, मुद्रा और बंध जैसे योग के अंगों का उपयोग किया जाता है। तंत्र साधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कुंडलिनी योग है, जिसमें शरीर में स्थित ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) को जागृत किया जाता है।

तंत्र साधना के इस क्षेत्र में आने से इससे जुड़ा साहित्य पढ़ना लाभदायक रहता है। इस साहित्य का अध्यन मार्ग दिखने में सहायक साबित होता है। मन की शंकाओं का भी निवारण करता है। इस तरह से तंत्र साहित्य के अधिक से अधिक ग्रंथ पढ़ने फायदेमंद रहते हैं। गौरतलब है कि तंत्र साहित्य में विभिन्न ग्रंथ शामिल हैं, जैसे कि:

शैव आगम बहुत ही महत्वपूर्ण गिना गया है। ये ग्रंथ शिव को सर्वोच्च देवता मानते हैं।

इसी तरह शाक्त आगम का भी बहुत महत्व है। ये ग्रंथ देवी की पूजा पर आधारित हैं।

वैष्णव आगम में भी बहुत से रहस्य उजागर किए गए हैं। ये विष्णु और उनके अवतारों की पूजा पर केंद्रित हैं।

तंत्र की प्रामाणिकता को लेकर अभी भी लोग अक्सर बहस में पड़ जाते हैं। तंत्र की प्रामाणिकता को लेकर कई मतभेद हैं। कुछ विद्वान इसे वैदिक परंपरा का ही एक अंग मानते हैं, जबकि कुछ इसे स्वतंत्र परंपरा के रूप में देखते हैं। तंत्र साधना का वैज्ञानिक आधार भी है, जिसमें ध्यान और प्राणायाम की विधियाँ मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानी जाती हैं। फिर भी यह एक हकीकत है कि बहुत पढ़े लिखे और उच्च पदों पर नियुक्त लोग तंत्र में गहरी आस्था रखते हैं। तांत्रिकों के पास सलाह लेने के लिए जाने वालों में  विद्वान भी शामिल रहते हैं। 

इस तरह तंत्र का आधुनिक संदर्भ भी बहुत प्रभावशाली है। अब यह बात अलग है कि आजकल तंत्र को अक्सर गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है, जिससे इसकी वास्तविकता और महत्व धुंधला हो जाता है। तंत्र की सच्ची साधना में नैतिकता, स्व-अनुशासन और गुरु-शिष्य परंपरा का विशेष महत्व है। चादर या चटाई बिछा कर  बिछा कर सड़क पर बैठने वालों ने ज्योतिष और तंत्र दोनों को सस्ता बना दिया है। लोगों की नीर में यह सब अब सड़क छाप बन गया है। 

लेकिन सच में निष्कर्ष यही है कि तंत्र एक समृद्ध और जटिल परंपरा है, जिसका इतिहास और प्रामाणिकता गहन अध्ययन और अनुभव से ही समझा जा सकता है। यह केवल एक साधना पद्धति नहीं है, बल्कि जीवन को देखने और समझने का एक व्यापक दृष्टिकोण है, जो व्यक्ति के मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है।

तंत्र का सच तंत्र में आ कर ही समझना सही होगा। सुनी सुनाई या पढ़ी पढाई बातों से भी वह बात नहीं बनती। सच्च मार्गदर्शक या गुरु बहुत किस्मत से   देखरेख में तंत्र साधना करना ठीक रहता है वरना यह सब खतरनाक भी साबित हो सकता है।